Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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पच १४४-१४७ ] सन्देश रासक
मच्छरभय' संचडिउँ रन्नि गोयंगणिहि,
मणहर रमियइ नाहु रंगि गोयंगणिहि । हरियाउलु धरवलउ कयंबिण महमहिउ,
कियउ भंगु अंगंगि अणंगिण मह अहिउ ॥ १४६ ॥ विसमसिजविलुलंतिय" अइदुक्खिन्नियई",
अलिउलमाल विणग्गय सर पडिभिन्नियई। अणिमिसनयणुव्विन्निय णिसि जागंतियइ,
वत्थु" गाह किउ दोहउ णिह" अलहंतियइ ॥१४७॥ झंपवि तम वद्दलिण दसह दिसि छायउ अंबरु,
उन्नवियउ घुरहुरइ घोरु घणु किसणाडंबरु ।
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1B भइ। 2B संचरिउ। B रंगि। 4 B मणहरु। 5A रमीयइ। 6B रंगिचंगि। + पतित एषः पादः C आदर्शे। 7 C हरियालउ। 8C कयंविणि। 9 B अणंगिहि । 10 Aहियउ। 11C विललंतय । 12 C दुक्खिन्नयइ; B दाखिन्निवइ । 13 C भिन्नयइ । 14 A B °नयणोविनिय। 15 A वत्थ; B वत्थू। 16 C कीह। 17 B निंद । 18 A झंपिवि। 19 A दहहि । 20 A उन्नमियउ। 21 C घुरुहरइ ।
[टिप्पनकरूपा व्याख्या] [१४६] मच्छर[भ]याद् गवां बजै[:] स्थले आरूढम् । गोपाङ्गनाभिर्मधुरं गीतं गीयते । हरिताऽऽकुलं धरावलयं कदम्बेन सुगन्ध(ध्य)ति । अनङ्गेन ममाधिक[३] अङ्गभङ्गः कृतः ॥ १४६॥
[१४७] रात्रौ विषमसिज्झा(शय्या)यां मया लुलन्त्या एकाकिन्या निद्रा गमिता। सरोवरे कमलानां मध्ये अलिकुलमाला सङ्कुचिता जाता । मया अनिमिषं रात्री जागरणः कृतः। वस्तुक-गाथा-दोधकैनिद्रामलभन्त्या रात्रिर्निर्गमिता ॥ १४७॥
[१४८] भो पथिक ! श्यामबद्दलैः दशदिार्श व्याप्य आकाश आच्छादितः। गगने उन्नवि(मि)तो घुरहुरति घनो मेघः कृष्णाडम्बरः । आकाशमार्गे नभोवल्ली
** * [अवचूरिका] -- [१४६] मच्छरभयाद् गवां बजैः स्थले भारूढम् । गोपाङ्गनाभिर्मधुरं गीतं गीयते । हरिताकुलं धरावलयं कदम्बेन सुगन्धितम् । अनङ्गेन समधिकमङ्गभङ्गाः] कृतः ॥
[१४७] विषमसह्या (शय्यायां) विलुलन्त्या अतिदुःखाकीर्णया अलिकुलमालाविनिर्गतस्वरप्रतिमिया अनिमिषनयनोद्विमया निशि जागर्त (गृत)या निद्रामलभन्त्या वस्तुको गाथा दोधकश्च
[१४] वईलेन तमो अत्यर्थ झम्पित्वा-भाक्रम्य, दस(श)सु दिक्षु अम्वरमाकाशमाच्छा. दिवम् । धन उनमितो घोरं यथा कृष्णाडम्बरं घुसहरति-गर्जति । नभोवल्ली-विद्युत् नभोमार्गे
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