Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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७७.
पथ १८६-१९०] सन्देश रासक धूइज्जई तह अगरु घुसिणु तणि लाइयइ,
गाढउ निवडालिंगणु अंगि सुहाइयइ । अन्नह दिवसह सन्निहि अंगुलमत्त हुय, ___ महु इक्कह परि पहिय णिवेहिय बम्हजुय ॥ १८९ ॥
विलवंती अलहंत निंद निसि दीहरिहि । पढिय" वत्थु तह पंथिय "इक्कल्लिय परिहि ॥ १९ ॥ दीहउसासिहि दीहरयणि मह" गइय" णिरक्खर, ___ आई" ण णिय णिंद तुझ सुयरंतिय तक्खर ।
अंगिहिं तुह अलहंत घिट्ट करयलफरिसु, ___ संसोसिउ तणु हिमिण हाम हेमह सरिसु । ___ 1 A चुजइ। 2 B नास्ति; C बहु। 3 C तणु। 4 B गाढा। 5 C अंगु। 6 B अन्नदिवस। 7 B संनिहिय सुअं। 8 C अंगुलिमित्त। 9 C अलहति। 10 B दीहरहि; C दीहरह। 11 B पढिउ। 12 C तहिं। 13 A इकल्ली; C इक्कलिय। 14 C नहु । 15 B गईय; C गई। 16 A C°क्खरु। 17 B आई। 18 A सुयरतय; C समरंतह । 19 C तकरु। 20 B तुय; C तुअ । 21 A °फरसु । 22 C संसोउ। 23 C हिमण ।
[टिप्पनकरूपा व्याख्या ] [१८९] अगरुं धूप्यते, घुसणं तनौ लेप्यते, गाढालिङ्गनमतेषु सुखायते । अन्न(न्य)दिवसप्रमाणे[न] ते दिवसा अङ्गुलिमात्रा:-स्तोकमात्राः। भमैकस्याः परं वर्षाणां ब्रह्मयुग्म(ग)मिति निविष्टं मन्ये ॥ १८९ ॥
१९०] मया विरहे विलपन्त्या दीर्घरात्री निद्रां अलभन्त्या दीर्घोच्छासैः एषा वस्तुः पठिता। भो पथिक ! गृहे एकाकिनी निवसति ॥ १९०॥
[१९१] हे निरक्षर ! दीर्घोस्नखा(ष्णश्वा)सैः दीर्घा रजन्यो गताः। हे तस्कर ! निर्दय ! त्वां स्मरन्त्या निद्रा नागता । हे धृष्ट ! अङ्गेषु तव करस्पर्श अलभन्त्या *
[अवचूरिका] ----- [ १८९] अगरं धूभ्यते, घुसूर्ण तनौ लिप्यते, गाढालिङ्गनमङ्गेषु सुखायते । अत्र (न्य) दिवसप्रमाणैरेते दिवसा अङ्गुलिमात्रा:- स्तोकमात्राः । ममैकस्याः परं वर्षाणां ब्रह्मयुगमिति निविष्टं मन्ये ॥ [१९०] हे पथिक ! गृह एकाकिन्या विलपन्त्या मिदामलभन्त्या निशि दीर्घतरं वस्तुकः पठितः॥
[१९१] हे निरक्षर ! दीर्घोष्णश्वासैर्दीधी रजन्यो गताः । हे तस्कर ! निर्दय ! त्वां स्मरन्त्या निद्रा मागता । हे सृष्ट! भनेषु तक करस्पर्शमलभन्त्या ममा हैमन्तेन धान्ना हेमसदृक्षं
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