Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 250
________________ सन्देशरास कपद्यानुक्रमणिका निवडंत रेणु धरपिंजरी हिं पउदंडउ पेसिज्ज झाल पर मोडवि निमिसिद्द्भु पच्चास पहूओ पज्जलंत विरहग्गि तिव्व पडिउट्ठिय सविलक्ख पडिबिंब दरसिज्जइ पढवि इय गाह मिय पहिय ण सिज्झइ किरि पहियवयण आयन्निवि दीहर पहियवयण आयन्निवि पिम्म' पहिउ भणइ कणयंगि पहिउ भणइ थिरु होहि * पहिउ भणइ विवि दोहा पहिउ भणइ पडिउंजि पहिउ भणइ पसयच्छ तुरियउ पहिउ भणइ पसयच्छि धीरि पहिउ भणइ पहिजेत पाइय पिय वडवानलहु *पाणी तणइ विउइ पिविरहानल संतविअ पिउ चावद्दहि भणिजइ पिप्पल पाडल पुय पलास पियविरहविओप पुण पिउ समरिय पहिय पुव्वदिसिहि तमु पसरिउ पुवच्छेयाण णमो फलु विरहग्ग पवासि फुस लोयण vas बगु मिल्दवि सलिलद्दहु बहुविविहराइ घण मणहरे हि भमुहजुयल सन्नद्धउ मइ जाणिउ पिउ आणि मइ घणु दुक्खु सहप्पि मच्छरभय संचरिउ रनि मत्तमुक्क संठविउ विवह मयणसमीर विहुय विरहा मह ण समत्थिम विरह सउ मह महिउ अंगि बहु महहिययं रणय निही मह पिक्खिव विभिउ Jain Education International पद्याङ्क २१० माउलिंग मालूर मोय १४० माणुस दिव्य विजाहरेहिं ६८ मुक्काहं जत्थ पिए ३ | रमणभार गुरु वियडउ २०८ | रयणायरधरगिरि तरुवराई २८ रयणीतमविद्दवणो १६४ रायरुद्ध कंठग्गि विउद्धी ८५ रुवि खणलु फुसवि ९९ रेहंति पउमराइव १२५ | लज्जवि पंथिय जइ १९८ लहि छिदु विभिउ विरह ११७ ल्हसि अंसु उद्धसिउ ९८ लेसूड एल लंबिय (पृ. १५) लोयणजुयं च णज्जइ ९१ वयण णिसुणेवि मणमत्थ वाहिज्जइ नव किसलय | विजयनयर कावि विज्झति परूप्पर तरु लिहंति वियसाविय रवियर हि विरह परिग्गह छाड विलवंती अलहंत निंद | विविहविअक्खण सत्थिहि ५ विसमसिज विलुलंतिय वंक कडक्खिहि तिक्खिहि सकसाय णवब्भिस सुद्ध सलज्ज सिरेविणु पयडि ११४ सिजुन्हनिसासु सुसोहिय सिहणा सुयण खला १४४ | सुन्नारह जिम मह हियउ २०२ | सुरहिगंधु रमणीउ सरउ ५२ सेरंधिहिं घणसारु ण चंदणु १९७ सासित विवज्जइ १९९ सोहइ सलिल सरिहिं १४६ २५ संकेवइ जणइ सुहं वियासु १९५ संदेसडर सवित्थरउ पर हउ ११० १०२ १०९ ८९ (पृ. २८ ) ७५ १३३ ५७ ९५ १८१ ११७ १२० 35 93 ७९ | संपडिउजु सिक्खइ २०३ हरियंदणु सिसिरत्थु ११९ हारु कस विधूलावलि २०७ | इंसिहि कंदुट्टिहि घुट्टिवि For Private & Personal Use Only ९३ पयाक ५६ ૨ १२९ ५० १ ३३ १५४ ६७ ३९ ७१ २१२ ८७ ६० ३४ ८३ २०५ २४ २०६ १३७ ७८ १९० ४३ १४७ १२३ १७१ ४०. १७३ ३६ १०८ १८४ १८७ ९० १६१ २०१ ८१ ८० २० १३५ ४९ १६२ www.jainelibrary.org

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