Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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७४
सन्देश रासक
किं तहि देसि णहु फुरई जुन्ह णिसि णिम्मलचंदह, अह कलरउ न कुणंति हंस फलसेवि रविंदह । अह पायउ हु पढइ कोइ सुललिय पुण राइण, अह पंचउ' हु कुणइ कोइ कावालिय' भाइण । महमहइ अहव पच्चूसि हु ऑससिउ घणु" कुसमभरु ।
अह मुणिउ पहिय" ! अणरसिउ पिउ
सरइ समइ जु न सरइ घरु ॥ १८३ ॥
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3 C कुलउ | 4A पाइउ | 5 C सुलली ।
1BC कि । 2 C कुरहिं । 6 B रायण । 7 C पंचमु । 10 A घण |
8
A कावालीय; C कावालिउ । 9A भायण; C भाणिउ । 12 C पहिउ |
11 A मुणउ ।
[ टिप्पनकरूपा व्याख्या ]
assनन्द्यते । आत्मा निमेषार्द्धमपि रतये न दीयते । कामतस्या (ता) विद्धा न दीर्यते । अपि तु दीर्यते ॥ १८२ ॥
[ तृतीय प्रक्रम
[१८३ ] किं तस्मिन् देशे ज्योत्स्नया निर्मलचन्द्रो न स्फुरति ?, अथ किं हंसाः अरविन्दान् सेव्य कलकलारवं न कुर्वन्ति ?, अथ प्राकृतकाव्यं सुललितं सुमनोहरं कश्चिन्न पठति ?, अथ कोकिलाः पञ्चमखरं न कुर्व्वन्ति ?, अथवा प्रत्यूषे रविप्रफुल्लित कुसुमभरो न महमहति ? | अथ मया ज्ञातं पथिकेन सरि(शर) त्-समये 'यद् गृहं न स्मरि (स्मृतं [त ] दरसिको - रसवेत्ता नेत्यर्थः ॥ १८३ ॥ ॥ सरि (शर) द्वर्णनं समाप्तम् ॥ →→→ [ अवचूरिका ]
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茶味
[ १८३ ] हे पथिक ! किं तस्मिन् देशे चन्द्रज्योत्स्ना निशि रात्रौ निर्मला किं न स्फुरति ?, अथ तस्मिन् देशेऽरविन्दानां फलसेविनो राजहंसाः कलरवं न कुर्वन्ति ?, अथवा सुललितभाषया प्राकृतं कोऽपि न भणति ?, अथ कापालिक ! प्रियभावेन पञ्चमरागं कोऽपि न करोति ?, अथ प्रत्यूषे उच्छ्रसित-विकस्वरघनकुसुमभरो न परिमलायते ?, अथैवम् ज्ञातं हे पथिक ! प्रियो नीरसो यः शरत्काले गृहस्य (हं) न स्मरति ॥ इति शरद्वर्णनम् ॥
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