Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
पद्य १६६-१७०] सन्देश रासक
धूव दिति 'गुरुभत्ति सइत्तिहि, ___ गोआसणिहिं तुरंगचलस्थिहि । तं जोइवि हउँ णियय उव्विन्निय', __णेय सहिय मह' इच्छा पुन्नियं ॥ १६९ ॥ [युग्मम् ] तउ पिक्खिय दिसि अहिय विचित्तिय", ___णाय हुआसणि" जणु पक्खित्तिय" । मणि पज्जलिय विरह झालावलि,
नंदणि गाह भणिय" भमरावलि ॥ १७० ॥ सकसाय णवन्भिस" सुद्धगले,
धयरह-रहंग रसंति जले।
___1C गुर। 2 C वलच्छिहिं। 3 A B हउ । 4 B नियर; C निय। 5 C उव्विनी । 6 Cणिय। 7 A हउ। 8 A उन्निय। 9 C पियर। 10C विचित्तय। 11 B हुतासणि। 12 B पखित्तय । 13 B मण। 14 AC नंदण। 15 A गाहा। 16 C भणी । 17 Cणसव्विस; B णसुव्विस ।
[टिप्पनकरूपा व्याख्या ] [१६८-१६९] गवासने तुरङ्गमसा(शा)लासु नार्यों भालस्थले तिलकं तीक्ष्णं कृत्वा, कुमचन्दनाभ्यां तनुमर्चयित्वा, सोरण्डकंक्रीडाभाजनं करे कृत्वा, दिव्यं गीतं गायन्त्यो गुर(रु)भक्तिसहिता धूपं ददन्ति । तं सोरण्डकं दृष्ट्वा उद्विग्ना जाता। यतो नेच्छा पूर्णा ॥ १६८-१६९ ॥
[१७०] भ्रमरावल्या एषा नन्दणि गाथा भणिता । तदा अधिकविचित्रां दिशं प्रेष्य(क्ष्य) जाने अहं हुताशने प्रक्षिप्ता । काभिः प्रज्वालितमनोविरहज्वालाभिः॥१७॥ * [अवचूरिका]
- . [१६४-१६९ ] गवासने तुरङ्गमशालासु नार्यों भालस्थले तिलकं तीक्ष्णं कृत्वा, कुहमचन्दनाभ्यां तनुमर्चयित्वा, सोरण्डकं =क्रीडाभाजनं [करे ] कृत्वा, दिव्यं गीतं गायन्त्यो गुरुभक्तिसहिता भूपं ददन्ति । तं सोरण्डकं दृष्ट्वाऽहमुद्विग्ना जाता । यतो नेच्छा पूर्णा जाता ॥
[१७० ] ततो दिशोऽधिकविचित्रा दृष्टा, अहमेवं जाने हुताशने प्रक्षिता । मनसि बिरहा बालावलिः प्रज्वलिता । ता नन्दिनी गाथा भ्रमरावलिश्च भणिता ॥
"भगणा इह दिणि छंद धुयं, चउसहि वि मत्तय संठवियं । गुरु सोलस तीस दुई लहुयं, अठतालिस अक्खर बंधनियं॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282