Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 200
________________ सक पच १०४-१०६] कहि ण सवित्थरु' सक्कर 'मयणाउहवहिय, ___ इय अवत्थ अम्हारिय कंतह सिव कहिय । अंगभंगि णिरु अणरई उज्जगउ णिसिहि, विहलंघल गय मग्ग चलंतिहि आलसिहि ॥ १०५ ॥ धम्मिलह संवरणु न घणु कुसमिहि रइउ, कजलु" गलइ कवोलिहि जं नयणिहि धरिउ । जं पियआसासंगिहि अंगिहिं पलु चडई, विरह हुयासि" झलकिउ तं पडिलिउ झडइ ॥ १०६ ॥ आसाजलसंसित्त विरहउन्हत्त जलंतिय", ___णहुँ जीवउ" णहु मरउ पहिय ! अच्छउ धुक्खंतिय" । 1C सवित्थतु। 2 C मणायउह। 3 B नास्ति 'इय'; C हुआ। 4 A अम्हारीय । 5B पहिय कंतह। 6 B सह; C सउ। 7 C अणरउ; B अरुणउ। 8 B उयग्गउ । 9 BC चलंतह। 10 C आलिसिहि। 11C कजल। 12 C नयणि। 13 Bधरियउ। 14 A अंगि प। 15 B चडई। 16 A विरहु। 17 A हुयास; B हुयासु । 18 C झलकि पडिल्लउ तं; B तं पडलिउ झलइ। 19 A जलंतीय; C जलंती। 20 A नहु । 21 B जीयउ । 22C धुकंती। [टिप्पनकरूपा व्याख्या] ॥१०५] भोपथिक! संदेशको विस्तरः। मदनस(श)रव्याप्तया मया कथि(थयितुं न शक्यते । परं भो पथिक! मदीयाऽवस्था प्रियतमस्याग्रे सर्वा कथनीया । अहर्निशं मे-मम अङ्के अरतिर्वर्त्तते । तव विरहे मार्गे चलन्त्या विहलकला भवामि ॥ १०५॥ [१०६] धर्मिल(म्मिल्ल)स्य संवरणं कुसुमैर्न रचितम् । नेत्रयोधृतं कजलं कपोलमार्गे गलति । यत् प्रियागमास(श)या पलं-मांसं देहे चटति, तद्विरहाग्निना झलकितं-भस्मीकृतं द्विगुणं झटति ॥ १०६॥ [१०७] आसा(शा)जलेन संस(सि)क्ता विरहाग्निना ज्वलन्ती च न जीवामि, [भवचूरिका] . [१०५] हे पथिक ! अहं मदनायुधबाधिता संदेशकं सविस्तरं कथि(थयितुं न शक्नोमि, परमिमामवस्थां सकलां कान्ताय कथय । तामाह - अङ्ग भङ्गः, नितरामरतिः, निशि जागरः, विहलकला गतिर्मानें चलन्त्या मालस्येन ॥ [१०६] धम्मिल्लस्य संवरणं कुसुमैन रचितम् , नेत्रयोर्धतं कजलं कपोलमार्गे गलति, यत्रियागमास(श)या पलं-मांसं देहे चटति, तद्विरहाग्निना झलकितं- भस्सीकृतं द्विगुणं झटति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282