Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 212
________________ पद्य १३०-१३४ ] सन्देश रासक जमजीहह णं चंचलु णहयल लहलहइ, तडतडयड धर तिडइ ण तेयह भरु सहइ । अइउन्हउ 'वोमयलि पहंजणु जं वहइ, तं झंखरु विरहिणिहि अंगु फरिसिउदहइ ॥ १३२ ॥ पिउ चावइहि भणिजइ नवघण कंखिरिहिं, सलिलनिवहु तुच्छच्छउ" सरइ तरंगिणिहिं । फलहारिण उन्नमियउ" अइसच्छयई सुहि, कुंजरसवणसरिच्छ पहल्लिर" गंधवहि ॥ १३३ ॥ तह पत्तिहि संसग्गिहि चूयाकंखिरिय", कीरपंति परिवसई णिवड" णिरंतरिय । लइ पल्लव झुल्लंति" समुट्ठिय करुणझुणि, हउ किय णिस्साहार पहिय "साहारवणि ॥ १३४ ॥ [युग्मम् ] 1 A णहीयलु । 2 C तडिइडि। 3 B नेहय; C तेअह । 4 B डोमयलि। 5 B वहई । 6 B विरहिणीहि; C विरहिणिअंगु। 7 B फरसिउ; C फरिसउ। 8 C वावहि। 9C किंखिरिहिं। 10 A निवउ। 11 C तुच्छछहु। 12 C उन्नविय। 13 C अइसुच्छह । 14 B पहिल्लिर; C पहुल्लिर । 15 C गंधविहि। 16 B सहसग्गिहि। 17 C बूयाकंखिरिहि । 18 C °वयइ। 19 B निविड। 20 A णिवडंतरिय; C निरंतरिहिं। 21 B झुलंत । 22C साहीर। [टिप्पनकरूपा व्याख्या ] [१३२] वितर्के चञ्चलं नभस्तलं यमजिह्वावल्लहलहति । त्रडबडबडदिति धरा सु(शुष्यन्ती-शब्दं करोति । तेजोभरं न सहते। अत्युष्णः प्रभञ्जनो वहति । झंखरो डुडुयालकनामा पवनः विरहिणीनामङ्गं स्पृष्ट्वा दहति ॥ १३२॥ [१३३-१३४] नवधनोत्कण्ठितैश्चातकैः "प्रिय प्रिय” इति शब्दो भण्यते स्म । तरङ्गिणीषु सलिलप्रवाह[तुच्छाच्छ[:] सरति स्म । अथ षट्सु पदेषु सहकारवर्णनम् -फलभारेणोन्नमितं शुभं सहकारवनं अतिसच्छायति-अधिकं शोभते । + [अवचूरिका] [१३२] वितर्के-चलं नभस्तलं यमजिह्वावत् लहलहति । डबडबडदिति धरा शुष्यन्तीशब्दं करोति । तेजोभरं न सहते। अत्यण्य(युष्णः)प्रभानो ब्योमतले वहति । झसरो डुण्डयालकनामा पवनो विरहिणीनामङ्गं स्पृष्ट्वा दहति ॥ [१३३-१३४] नवधनोत्कण्ठितैश्वातकैः "प्रिय प्रिय" इति शब्दो भण्यते स्म । तरङ्गिणीषु सलिलप्रवाह[:] तुच्छाच्छस्सरति स । अथ षट्सु पदेषु सहकारवर्णनम् - फलभारेणोन्नमितं शुभं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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