Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 203
________________ ४६ सन्देश रासक [द्वितीय प्रक्रम उत्तरायणि 'वडिहि दिवस, णिसि दक्षिण इहु पुर्व णिउइउ । दुच्चिय वड्डहिं जत्थ पिय, इहु तीयउ विरहायणु होइयउ ॥ ११२ ॥ 15 गयउ दिवसु थिउ सेसु पहिय ! गमु मिल्हियइ, णिसि अत्थमु बोलेवि दिवसि" पुणु" चल्लियइ । बिबाहरि दिण"बिंब जुन्ह गोसिहि" बलई", तो "जाइअइ अ कजि मई अइआवलइ*, जइ न रहहि इणि ठाई पहिय ! इच्छहि गमणु, चूडिल्लउ खडहडउ पियह गाहाई भणु ॥ ११३ ॥ 1C बढहि। 2 C दक्षिण; B दक्षण। 3 Cइय। 4 C पुवि । 5C निउयउ । 6 A वत्थहि। 7 A लीयउ। 8 A विरहाइणु; C तुअ विरहायण। Cगम । 10 C अत्थिमु। 11 C दिविसि। 12 C पुणि। 13 B बिंबाहर। 14 BC दिणि । 15 C बिंबु। 16 C जुनु। 17 B गोसहिं। 18 C चलइ। 19 A जायइ अकजि । 20 B ममइ; A मइ अ।* C आदर्श एषः पादः 'रइणि तो जाइ हर कन्जिहिं आवलउ' एतादृशो लभ्यते। 21 B C ठाई। 22 B गवणु। 23 A गाइं भमणु। [टिप्पनकरूपा व्याख्या] [११२] सर्वकालस(स्य) दुःखतामाह - उत्तरायणे दिवसा वर्द्धन्ते रात्रयो हीयन्ते, दक्षिणायने रात्रयो वर्द्धन्ते दिवसा हीयन्ते । यत्र द्वे वर्धते तन्मन्ये एषः त्रि(४)तीय[:] विरहायनो जातः । द्वयोरेनौ तुर्यः सुखायनः, चकारात् ॥ ११२ ॥ चोडियालकच्छन्दः। तल्लक्षणम् - "दोहाछंदु जि दु दलु पढि मत्त ठविजहिं पंच सु केहा । चूडिल्लउ तं बुह मुणहु गुल्हु पयंपइ सच्चु सु एहा ॥" दोधकच्छन्दसं पठित्वा प्रान्ते प्रान्ते पञ्च पञ्च मात्रा न्यस्यन्ते । चोडियालको भवति ॥ [११३] दिवसो गतः, स्थितः शेखः(षः) । हे पथिक ! गमनं मुच्यताम् । निर्मा * [अवचूरिका] ११२] उत्तरायणे दिवसा वर्धन्ते, रात्रयो हीयन्ते; दक्षिणायने रात्रयो वर्धन्ते न दिवसाः। यत्र द्वे वर्धते तन्मन्ये - एषस्तृतीयो विरहायनो जातः । द्वयोहानौ तुर्यः सुखायनश्चकारात् ॥ [११३] हे पथिक ! दिवसो गतः-स्थितशेषो जातः । गमनं मुच्यताम् । निश्यस्तमनं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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