Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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५२
सन्देश रासक
[द्वितीय प्रक्रम 'हरिसुयबाणखुरप्पिहिं कइ दिण मणु पहउ,
भणु कइ कालि पडुत्तउ सुंदरि तुझं सुहउ ॥ १२४ ॥
पहियवयण आइन्निवि दीहरलोयणिहि ।। पढियउ गाहचउक्कउँ मयणाकोयणिहि ॥ १२५ ॥
[अर्द्धम् , कुलकं पञ्चभिः।]
आएहि पहिय किं पुच्छिएण" मह पियपवासदियहेण । हरिऊण जत्थ सुक्खं लद्धं दुक्खाण पडिवटै ॥ १२६ ॥
1C हरसुइ। 2 A °खरप्पिहि; B °खुरषुप्पहि। 3 A कइ दिणु; C कइदिणि मुण। 4A काल। 5C पडत्तउ। 6 B तुय; C सुह। 7 A पढिउ। 8 B°चउकु । 9 A. मइणकोइणिहिं; C मयणुको । 10 B अइएह। 11 C पुच्छिएहिं । 12 C दियहेहिं । 18 A पडिवत्तं।
[टिप्पनकरूपा व्याख्या ] विरहक[र] पत्रैः, अङ्गं किमिति कल्प(कर्य)ते। हरिसुतः-कन्दर्पः, तस्य बाणक्षुरप्रैः कं दिनमारभ्य मनः प्रहतम् । कस्मिन् दिने तव भर्त्ता प्रचलितः॥ १२४॥
[१२५] एवं पथिकेन पृच्छा कृता, इति प्रथमे(मम्) । घनरेखाविनिर्गतशारदशशिजयनार्थे 'समुहं' स्वमुखं भवत्या कं दिनमारभ्य विरहाग्निना झम्पितम्, इति द्वितीय [प्रश्नम्] | लोचनाभ्यां अश्रु क्षरन्त्या कदलीसमानं देहं सोख(शोष)यन्त्या कानि (कति?)दिनानि जातानि, इति तृतीयप्रश्नम् । एवं दुःखायात्मा किमिति प्रदीयते, कन्दर्पतीक्ष्णक्षुरप्रैः कदा मनः प्रहतम्, त्वत्पतिः कदा प्रस्थितः, इति चतुर्थप्रश्नम् । पथिकवचनं श्रुत्वा दीर्घाक्षा(क्ष्या) गाथाचतुष्कं पठितम्, इति पञ्चमम् ॥ १२५ ॥
[१२६] हे पथिक ! मप्रियप्रवासदिनेन पृष्टेन किम् । यस्मिन् दिने सौख्यं त्याज्य(त्यक्त्वा ) दुःखानां प्रतिपढें प्राप्तम् ॥ १२६ ॥
[भवचूरिका] ---- दुःसहविरहकरपत्रेण अङ्गं किमिति कर्प्यते-खण्ड्यते । हरिसुतस्य - कन्दर्पस्य [वाण]क्षुरप्रैः के दिनमारभ्य, ते-तव मनः प्रहतम् । हे सुन्दरि ! भण, तव सुभगः- भत्तो कस्मिन् दिने प्रस्थितः ॥ [१२५] पथिकवचनं श्रुत्वा दीर्घाझ्या गाथाचतुष्कं पठितम् ॥
[१२६] हे पथिक ! आकर्णय, मत्प्रियप्रवासदिवसेन पृष्टेन किम् । यस्मिन् सौख्यं स्यज (त्यक्त्वा) दुःखानां प्रतिपढें प्राप्तम् ॥
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