Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
४४ सन्देश रासक
[द्वितीय प्रक्रम इत्थंतरि पुण पुणवि' तेणि पहिय धरेवि मणु,
फुल्लङ भणियां दीहरच्छि णियणयण फुसेविणु ॥ १० ॥
सुन्नारह जिम मह हियउ, पिय'उकिंख करेई । विरहहुयासि दहेवि करि, आसाजलि सिंचेइ ॥ १०८ ॥
पहिउ" भणइ पहि जंत अमंगलु" मह म करि",
रुयवि रुयवि पुणरुत्त वाह संवरिवि धरि । पहिय ! होउ तुह" इच्छ" अज सिज्झउ गमणु,
मइ न रुन्नु विरहग्गिधूम लोयणसवणु ॥ १०९॥ 1AC पुणरवि पहिय। 2 A C नास्ति 'तेणि'। 3 A धारवि; C धरेविणु। 4 A फुलउ। 5AC भणिउ। 6A दीहअच्छि; B दीहच्छि। 7 C पय। 8 A उकिंषि करेइ; C उकिंखरेइ। 9 A. संचेइ । 10 C पहिय। 11 C अमंगल। 12 C महु । 13 B करहि। 14 C रुइवि। 15 C पुणरत्त। 16 A तुय । 17 B इच्छिउ।
---
[टिप्पनकरूपा व्याख्या ] न मृ(नि)यते; धुक्खंती अग्निरिव तिष्टामि । अत्रान्तरे, पथिकं मनो धृत्वा, पुनः पुनरपि नेत्रे स्पृष्ट्वा, फुल्लको भणितः ॥ १०७॥
[१०८] हे प्रिय ! मम हृदयं वर्णकारवद् वर्तते । यथा स्वर्णकारः प्रियोत्कण्ठया-अभीष्टलामेच्छया स्वर्णमग्निना दग्ध्वा, जल(ले)न सिञ्चति, तथा शरीरस्वर्ण प्रियविरहस्मरणेनाग्निना दग्धम् , पुनः सङ्गमाशाजलेन सिञ्चितम् ॥ १०८ ॥
[१०९] पथिको भणति-व्रजतः पथि ममामङ्गलं मा कुरु, रुदित्वा रुदित्वा । पुनरश्रूणि संवर । सा प्राह-पथिक! तवेप्सितं भवतु । अद्य गमनं सिद्ध्यतु । मया न रुदितम् । विरहाग्नेधूमाधिकत्वाल्लोचनश्र(स्र)वणं जातम् ॥ १०९ ॥
***** [अवचूरिका ] [१०७] आशाजलेन सिक्ता विरहाग्निना ज्वलन्ती न च जीवामि, नो मरामि, किन्त्वनिरिव धुखन्ती तिष्ठामि । अत्रान्तरे मनो धीरयित्वा, नेत्रे स्पृष्ट्वा, पु(फुलको भणितः ॥
[१०८] हे प्रिय ! मम हृदयं स्वर्णकारवद् वर्त्तते । यथा स्वर्णकारः प्रियोस्कण्ठया-अभीष्टलाभेच्छया स्वर्णमग्निना दग्ध्वा जलेन सिञ्चति, तथा शरीरस्वर्ण प्रियविरहाग्निना दग्ध्वा पुनः सामाशाजलेन सिञ्चति ॥
[१०९] पथिको भणति-पथि व्रजतो मम] माऽमङ्गलं कुरु । रुदित्वा पुनरश्रूणि संवर । सा प्राह - तवेप्सितं भवतु । अद्य गमनं प्रसिद्ध्यतु । मया नो रुदितम् । विरहाने—माधिकत्वालोचनाव स्त्रवणं जातम् ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282