Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(G) राजते ॥ नत्पन्ननदयनोजी च । स नरः सु. खमेधते ।। १०॥ अनामिकापर्व यदा तु लं. घयेत् । कनिष्टिका वर्षशतं च जीवति ॥ नव. त्यशीतिर्विगमे च सप्तति-तदर्धितं तं खलु ष. टिजीवितं ॥ १ ॥ ललाटे यस्य दृश्येत । शु. नरेखाचतुष्टयं ॥ घशीत्यायुर्विनिर्दृष्टं । पंचरे. माय तेटवू खाय तेवो, थने सुखमां वृद्धि करनारो थाय . ॥ १० ॥ जे मनुष्यनी ट. चली अांगळी अनामिकाना वेढायी वती होय, ते पूरा सो वर्ष जीवे . अने कंक जबी नबी थतां अनुक्रमे नेवं, एंशी, अने सित्तेर वर्ष जीवे , अने जो घरधीतो साठ. वर्ष जीवे . ॥१|| जेनां कपाळपर चार शुन रेखा देखाय तेनुं एंशी अने पांच रेखावाला. नु सो वर्षनुं घायुष्य होय . ॥२२॥ वली
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