Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 31
________________ ( 20 ) अमात्यं तं विजानीया - नवंनं महाधिपं ॥ ॥ 99 ॥ यस्य पाणितले रेखा | कनिष्टामूल संस्थिता || ऊर्ध्वं याति प्रदेशं च । शनमा - युजवेन्नरः || 95 || द्वितीया धनरेखा च । तृतीया कुलवर्धनी ॥ यदि पूर्णा तदा पूर्ण । बिन्ना तु वेदितं वेत् ॥ ७७ ॥ यस्य तु मपिबंधाये । रेखा चोत्तरगामिनी ॥ सुभटं तं थाय बे. ॥ 99 ॥ जेना हाथमां उचली यां गळीथी नीकळी वेठ जंचे जती रेखा दोय ते एकसो वर्षना व्यायुष्यवाळो थायंडे ॥७८॥ बीजी रेखा धननी ने बीजी रेखा कुळन वृद्धि करनारी होय बे, ते रेखान जो पूर्ण होय तो संपूर्ण यने त्रुटक दोय तो त्रुटक फळ थापे बे. ॥ ७५ ॥ जेना मणिबंध या गळथी 'नीकली उत्तर तरफ रेखा जती दीय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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