Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(१६) हुपुत्रो न संशयः ॥ ११ ॥ चामरमथवा वज्रं । करमध्ये तु दृश्यते ।। वाणिज्यं सिध्यते त. स्य । पुरुषस्य न संशयः ॥ १२॥ पद्मं वायदि वा शखः । कोष्टा गारश्च दृश्यते ॥ पुरुषस्य करे यस्ये-श्वरस्तु स च कथ्यते ॥१३॥ चक्राकारो ध्वजाकारः । पद्माकारश्च दृश्यते । सर्व विद्याप्रधानत्वाद् । बुद्धिमान स नवेन्नरः॥ ॥ १४ ॥ शूलं पाणौ भवेद्यस्य । म च धर्मवाळो जाए.वा. ।। ७१ ॥ जेना हाथमां चामर यथवा वज्र देखाय ते वेपारमा खरेखर सफ ळ थाय . ॥७२॥ जेना हाथमां पद्म शंख अथवा मार देखाय ते धनवान् थाय .॥ ॥ ७३ ॥ जेना हायमां चक्र ध्वजा अथवा प. मनो याकार देखाय ते सर्व विद्यासंपन्न बने बुद्धिमान थाय . ॥१४॥ जेना हाथमांत्रि.
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