Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 47
________________ ॥ ३ ॥ करू चोदरपृष्टिं च : स्तनौ कलभुजो तथा ॥ वदःस्थललाटं च : शिरः के. शांस्तथैव च ॥ २४ ॥ रामगजि स्वरं वर्ण । यवमत्स्यादिकांस्तथा ॥ एवं परोक्षेत । का न्याशास्त्रविशारदः ॥ ५ ।। पादौ ममांगुलि. स्निग्धा । म्यां यदि शिष्टतौ ॥ कोमलौ चैव रक्तौ च । सा कन्या गृहह्ममिनी ॥२६॥ अंगुष्टांतेन रक्तेन रिं च मन्यते॥ य. जि स्वर वर्ण जा अने मत्स्य विगेरेनी क. न्याशास्त्रना जाणकार परोदा करवी जोए. ॥३-२५ ॥ जे कन्याना पग सरखी थांगलीवान कोमळ बने लाल वर्णना मिपर पडता होय ते कन्या घरने शोजावनारी था. च मे ॥ १६ ॥ जेणीनो अंगुठगनो डोरी तो होय ते नर्तारने मानिती थाय , जेनां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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