Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ ( ५६ ) सा पढ़ी लगते सुखं ॥ ९८ ॥ यस्याः पयोधरे वामे । मितं तिलकं नवे ॥ कर्णे कं ठे सुपुत्राया । सा कन्या सुखदायिनी ॥ ए॥ ग्रीवया संक्या चंडी | दरिद्रा हस्वया तथा ॥ कुलस्य नाशिनी नारी । दीर्घया जायते पुनः ॥ ६० ॥ यस्या ग्रीवा सुवृत्ता स्या – खात्र यसमन्विता ॥ दक्षिणावर्तसंकाशा । सा भा थाय वे. ॥ ५८ ॥ जे स्त्रीनां मात्रां स्तन का न पने कंठपर तिलक होय ते सारा पुत्रवाळी पने सुख देनाएं) थाय वे ॥ एए ॥ लांबी डोकवाळी खीजण, टुंकी मोकवाळी द रिड), ने दर्घ डोम्वाळी कुळनो नाश क नारी थाय े ॥ ६० ॥ जे स्त्रीनी मोक गोक, त्रण रेखायी सहित, छपने दक्षिणावर्ति दोय ते अधिक नाग्यवाळी थाय छे. ॥ ६१ ॥ www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106