Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat શ્રી યશોવિજયજી » જૈન ગ્રંથમાળા. % દાદાસાહેબ, ભાવનગર. Cહોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨ ૩૦૦૪૮૪૬. www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROYATRADER-RE-READHA ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥ श्रीसामुश्किशास्त्रं ॥ (गुर्जरजाषांतरोपेतं ) नाषांतरकर्ता मनसुखलाल हीरालाल पावी प्रसिह करनार ___पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज. जामनगर. (काठीयावाम.) वीरसं० २४४४. विक्रमसं० १९७४. किं०-१-२-० श्रीजैनभास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेस. TREESRA MEHEYEATREETEENSTREESEX Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥अथ श्रीसामुश्किशास्त्रं प्रारभ्यते । ( गुर्जरभाषांतरसहित ) श्रादिदेवं प्रणम्यादौ । सर्वशं सर्वदर्शि नं । सामुद्रिकं प्रवक्ष्यामि । लदाणानि नर स्त्रियोः ॥ १ ॥ पूर्वमायुः परीक्षेत । पश्चालद. णमेव च ॥ घायुहीना नरा नार्यो । लदणैः नत्वा शांतिजिनेशं । नव्यजनस्य शांति. दातारं ॥ सामुद्रिकशास्त्रस्य । गूजरनाषांतरः क्रियते ॥१॥प्रारं नमां सर्वज्ञ तथा सर्ववस्तु जो. नारा आदीश्वर प्रभुने प्रणाम करीने स्त्री पुरु पना सामुद्रिक लदणो कहुं बु. ॥ १ ॥ पहे. लां घायुष्य तपासवं जोश्ए, अने त्यारवाद लक्षणो, कारण के घायुष्य विनाना स्त्री पुरु प होय तो लदाणोनुं शुं प्रयोजन? ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) किं प्रयोजनं ॥ २ ॥ वामागे तु नारीणां । दक्षिणे पुरुषस्य च ॥ निर्दिष्टं लक्षणं तेषां । सामुद्रस्य वचो यथा ॥ ३ ॥ पंचदीर्घ चतुर्हस्वं | पंचसूक्ष्मं परुन्नतं ॥ सप्तरक्तं विविस्तीर्णं । त्रिगंजीरं प्रशस्यते ॥ ४ ॥ बाहुत्रांतरं चैव । | जानु ( कर्ण ) नाशा तथैव च ॥ स्तनयोरंतरं चैव । पंचदीर्घ प्रशस्यते ॥ ९ ॥ ग्रीवा स्त्रीने मावे पडखे पने पुराने जमणे पड खे लक्षण होय वे, एम सामुद्रनुं वचन वे. || ३ || पांच वानां लांबां, चार टुकां. पांच कीणां, व तंत्रां, सात रातां त्रण पोळां, अने त्रण वानां गंजीर प्रशंसवा योग्य बे ॥ ४॥ १ हाथ, २ बे यांखो वच्चेनुं व्यंतर, ३ गोठ, ( पाठांतरे कान ) ४ नाक, छाने ९ बे स्तन वचेनु व्यंतर एटलां वानां खांबां वखणा 3 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रजननं पृष्टं । इस्वे जंघेच पूज्यते ॥ इस्वा. नि यस्य चत्वारि । पूजां प्राप्नोति मानवः ।।६।। सूक्ष्माण्यंगुलिपर्वाणि । दंतकेशनख वचः ।। पं. च सूक्ष्माणि येषां च । ते नरा दीर्घजीविनः ॥७॥ कदा कुदाश्च वदाश्च । घाणस्कंधलला. टिकाः । सर्वनुतेषु निर्दिष्टं । षमुन्नत्त्वं प्रशस्य ते ॥ ७ ॥ पाणिपादतलो रक्तौ । नेत्रांते च य . ॥ ५ ॥ डोक, गुह्य चिह्न, अने टुंकां मायळ पूजाय . या चारे वानां जेनां टुंकां होय, ते मनुष्य पूज्य थाय . ॥ ६ ॥१ प्रांगळीना वेढा, २ दांत, ३ केश, ४ नख, भने ५ चामडी, ए पांचे जेननां सूक्ष्म होय ते दीर्घायुषी थायजे. ॥ ७ ॥ १ कांख,श्नद. र. ३ गती, ४ नाक ५ खमा अने ६ कपाळ, ए छए उंचां सर्वत्र वखणाय . ॥७॥ १ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) नखानि च ॥ ताबुजिह्वाधरौष्टौ च । सप्तरक्तं प्रशस्यते ॥ए॥ स्वरः सत्त्वं च नानिश्च । । त्रिगंनीरं सुखप्रदं । नरः शिरो ललाटं च । त्रिविस्तीर्ण प्रशस्यते ॥ १० ॥ मुखश्वार्ध श. रीरस्य । सर्व वा मुखमुच्यते ॥ तत्रापि नाशिका श्रेष्टा । तत्रापि वरचक्षुषी ॥ ११ ॥ न स्त्रीहाथ पगनां तळीयां, ५ नेत्रना रेडा, ३ नख, ४ ताळवं. ५ जोन, ६ नीचलो होठ, 9 नपदो होठ, ए साते रातां वखणाय . ॥॥ १ स्वर, १ बळ, अने ३ नानि, ए त्रणे गं. भीर होय तो सुखदायक थाय , धने छाती, मस्तक, धने कपाळ ए त्रणे विशाळ वखणाय.॥ १०॥ शरीरथी यधे मुख श्रेष्ट रे, अथवा था मुख श्रेष्ट बे, तेमां पण नासिका धने बन्ने चकृत श्रेष्ट बे. ॥ ११ ॥ गती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) स्त्यजति रक्तादं । नाथ कनकागलं ॥ दीर्घ बाहुं न चैश्वर्य । न मांसोपचितं सुखं ॥ १॥ नरोविशालो धनधान्यभोगी। शिरोविशालो नृपपुंगवश्व ॥ कटीविशालो बहुपुत्रदारो । वि. शशलपादः सततं सुखी च ॥१३॥ चक्षुःस्नेहेन सोनाग्यं । दंतस्नेहेन जोजनं ॥ त्वचः स्नेहे. श्रांखानाने स्त्री तजती नथी, पाळा वर्णवा. ळाने धन, लांबा हस्तवानाने ऐश्वर्य, अने पु. ष्ट मांसवाळाने सुख तजतुं नथी. ॥ १५ ॥वि. शाळ गतीवाळो धन धने धान्यनो नोगवना. रो, विशाळ मस्तकवाळो नत्तम राजा, विशाळ केमवाळो बहु स्त्रीपुत्रवाळो, धने विशाळ पगवाळो हमेशा सुखी थाय . ॥ १३ ॥ नेत्रनी मृदुताश्री सौनाग्य, दांतनी मृदुताथी नोअन, चामडीनीमत्रताथी शय्या. धने पगनी मृदता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न शय्या च । पादस्नेहेन वाहनं ॥ १४ ॥ य. कर्मकठिनौ हस्तौ । पादावध्वनी कोमलौ ॥ य. घा पादौ तथा हस्तौ । तस्य राज्यं विनिर्दिशे. त ॥ १५ ॥ दीर्घलिंगेन दारिद्र्य । स्थूललिंगेन दुःखितः ॥ कृशलिंगेन सौजाग्यं । इस्वालिं गेन नृपतिः ॥ १६ ॥ अथायुर्खदणं निगद्यते-कनिष्टांगुलिथी वाहन मले . ॥ १४ ॥ मृउ हस्त तथा ध्वनी विनाना कोमळ पग ए बन्ने अर्थात् के जेवा हाथ तेवा पग होय तो तेने राज्य म. के . ॥ १५ ॥ दीर्घ लिंगथी दारिद्य, स्थूल लिंगथी दुःख, पातळां लिंगथी सौभाग्य, ध. ने टुंकां लिंगथी राजा थाय. ॥ १६ ॥ हवे घायुष्यनुं लक्षण कहे जे-टचली थां. गळीनां मुळ्थी जो चोथी यांगळीसुधी रेखा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) मूलाच । रेखा गबति तर्जनीं ॥ अविजिन्नानि वर्षाणि । शतमायुर्विनिर्दिशेत ॥ १७ ॥ कनिटांगुलिदेशाच्च । रेखा गबति मध्यमां ॥ अ. विजिन्नानि वर्षाणि । षष्टिमायुर्विनिर्दिशेत् ।। ॥ १७ ॥ रेखानिर्बहुन्निः क्वेशं । स्वल्पाभिर्धनहीनता। रेखाचतुष्टये सौख्यं । बहुरेखा दरिद्रता ॥ १७ ॥ अंगुष्टोदरमध्यस्थो । यवो यस्य वि. जती होय तो पूरेपूरा एकसो वर्षनुं आयुष्य होय . ॥ १७ ॥ टचली यांगळीना एक भा. गमांथी जो वचली यांगळीसुधी रेखा जती होय तो पुरां साठ वर्षनुं आयुष्य होय . ॥ १७ ।। बहु रेखाथी क्लेश, थोळी रेखाथी धनहीनता, चार रेखाथी सुख, धने घणी रेखाथी दरिडता थाय . ॥ १५ ॥ चंगुगः ना मध्यमां जेने जब होय , ते मनुष्य क. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (G) राजते ॥ नत्पन्ननदयनोजी च । स नरः सु. खमेधते ।। १०॥ अनामिकापर्व यदा तु लं. घयेत् । कनिष्टिका वर्षशतं च जीवति ॥ नव. त्यशीतिर्विगमे च सप्तति-तदर्धितं तं खलु ष. टिजीवितं ॥ १ ॥ ललाटे यस्य दृश्येत । शु. नरेखाचतुष्टयं ॥ घशीत्यायुर्विनिर्दृष्टं । पंचरे. माय तेटवू खाय तेवो, थने सुखमां वृद्धि करनारो थाय . ॥ १० ॥ जे मनुष्यनी ट. चली अांगळी अनामिकाना वेढायी वती होय, ते पूरा सो वर्ष जीवे . अने कंक जबी नबी थतां अनुक्रमे नेवं, एंशी, अने सित्तेर वर्ष जीवे , अने जो घरधीतो साठ. वर्ष जीवे . ॥१|| जेनां कपाळपर चार शुन रेखा देखाय तेनुं एंशी अने पांच रेखावाला. नु सो वर्षनुं घायुष्य होय . ॥२२॥ वली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खाः शतं भवेत् ॥ २५ ॥ ललाटे यस्य दृश्य ते । त्रयो रेखाश्च जीवितं ।। षष्टिवर्ष च नि. र्दिष्टं । विंशत्यो दिरेखके ॥ १३ ॥ पतिमेध्यतिकीर्तिश्च । विक्रांत विनयः सुखी। अ तिस्निग्धा च दृष्टिश्च । स्वटषायुः स नरो न. वेत् ॥ २४ ॥ इत्यायुलदणं. अतःपरं प्रवदया. मि । देहावयवलदणं ॥ तत्र पादतलं यस्य जेने कपाळे त्रण रेखा होय तेनुं साठ, श्रने बे रेखा होय तेनुं चालीस वर्षनुं घायुष्य होय . ॥ २३ ॥ जेनी दृष्टि अतिस्निग्ध हो. होय, ते बहु बुद्धिवान् कीर्तिवान् विनयी सु. खी पण अल्पायुषी होय . ॥ २४ ॥ एवी. रीते आयुष्यनां लदण कह्यां . ॥ हवे शरीरनां अवयवोनां लक्षण कहुं बु, तेमां पण सर्वज्ञे कहेबु पगनां तब्ीयांचें लक्षण कहुं ई, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) । यथा सर्वझभाषितं ॥ २५ ॥ अप्रस्वेदौ पृ. थुतलौ । कमलोदरसन्निनौ ।। प्रविष्टांगुलि. संयुक्तौ । नानालदाणसंयुतौ ॥ १६ ॥ नखैः सुदीप्तिसंयुक्तैः । संयुतौ चरणौ तथा ॥ कूर्मों न्नतैश्च रक्तैश्च । पुरुषोऽसौ नराधिपः ।। १७ ॥ अंगुष्टौ विपुलौ येषां । ते नरा दुःख नाजिनः ॥ क्लिश्यंते विरलांगुढ्यां । तथा चाध्वनि गा. ॥ २५ ॥ परसेवा विनानां जामां तळियांवाळां कमलना मध्यभागजेवां, नियमसर यांगळीवाळां, नातजातनां चिह्नवाळ, तेजस्वी नखवाळां, काचबाजेवा जंचां, अने रातां चरणवावाळो पुरुष राजा श्राय . ॥ १७ ॥ जेनां अंगुग पहोळा होय , ते मनुष्यो दुःखी हो. य, तथा रस्ते चालतां आंगळ बुटां प. डतां होय ते सुखी थाय . ॥ २७ ॥ उं; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) मिनः ॥ २० ॥ उन्नतैश्च समस्निग्धैः । सि तैस्तु सुखनाजिनः ॥ वृत्तै रक्तैस्तथा ताम्रे– वेत्सोऽपि नराधिपः ॥ २० ॥ यस्य प्रदेशिनी दीर्घा । ह्यंगुष्टं च व्यतिक्रमेत् ॥ स्त्रीनोगं लनते सोऽपि । महाजोगं न संशयः ॥ ३० ॥ मध्यमायां तु दीर्घायां । जार्याहानिविनिर्देशत् ॥ नामिकायां दीर्घायां । विद्या चां सरखां स्निग्ध मां गोळ तथा ताम्र जेवां रातां यांगळांवाळो माणस राजा थाय बे ॥ ॥ ५ ॥ जेनी अंगुठानी पमखेनी यांगळी अंगुठाथी मदोटी होय, ते मनुष्य स्त्रीजनुं सुख तथा महा वैभव जोगवे बे. ॥ ३० ॥ जेनी वचली यांगळी लांबी दोय तेनी स्त्रीन मरण पामे बे, अने जेनी अनामिका लांबी दोय ते विद्वान् थाय बे. ॥ ३१ ॥ जे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) नोगी नवेन्नरः॥ ३१ ॥ सा च ह्रस्वा नवेद्यस्य । तं विद्यात्पारदारिकं ।। यस्याः प्रदेशिनी स्थूला । नर्तुश्चैव कनिष्टिका ।। ३१ ॥ असंगतानिईस्वाभि-रंगुलिभिस्तु मानवः । नूनं हि पार्थिवो ज्ञेयः । सामुद्रवचनं यथा ॥ ३३ ॥ सामुछे पादांगुलिलक्षणं-नखैः श्वेश्व विक्रां तैनरा हि दुःख नाजिनः ॥ उशी. पुरुषनी अनामिका टुकी होय ते परस्त्रीलंपट थाय , तेमज जे स्त्रीनी ते थांगळी जा. डी होय ते जरिने अप्रिय . ॥ ३२ ॥जे. नी यांगळी टुंकी होय तथा एकबीजीने घडकती न होय ते खरेखर नृपति थाय , एम सामुद्रनुं वचन . ॥ ३३ ॥ हवे सामुद्रमां बतावे पगनी यांगळीनां लदो कहे बे-धोळा भने अामा नखवाळा माणसो दुः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) लाः कुनखा ज्ञेयाः । कामनोगविवर्जिताः ॥ ॥ ३४ ॥ विक्रांतैः स्फुटितै रूदै-नखैर्दारित द्यनाजिनः ॥ महापापानि कुर्वति । पुरुषा ह. रितैर्न खैः ॥ ३५ ॥ इंगोपकसंकाशै-नखैनवति पार्थिवः ॥ तानश्वर्यः । कुजैनखैश्च पातकी ॥ ३६ ।। वर्तुलेश्व तयैश्वर्य खी होय , घने खराब नखवाळा मागसो लंपट अने रतिसुख विनाना थाय . ॥३॥ खम्बचमा फूटेखा थने बुखा नखवाळा माणसो दरिडी थाय , तेमज लीला नख. वाळा माणसो महा पाप करे . ॥ ३५ ॥ गोकळगायजेवा नखवाो राजा, ताम्रजेवा नखवाळो बहु बळवान धने कुबडा नखवाळो पापी थाय . ॥ ३६ ॥ वळी गोळ नखथी ऐश्वर्य, जाडा नखथी सुख, तथा स्निग्ध नख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) । पुष्टितैः सुखिनो भवेत् ॥ स्निग्धैरुपचित. स्ताने-नरो नवति नृपतिः ॥ ३७ ॥ इति सामुद्रिके नखलदणं ॥ धनिनस्तुरगजंघा । राजानो मृगजधिकाः ॥ दीर्घायुः स्थूलजंघश्च । जायते ध्यानमानसः ॥ ३० ॥सिंहव्याघसमा जंघा । धनकीर्तिप्रदायिनी ॥ रोमयुक्ता च जंघा तु । दारिय खबु यति ॥ ३ए । शृ. घने भरावदार नखथी मनुष्य राजा थाय . ॥ ३७ ॥ एवीरीते सामुद्रिकशास्त्रमा नखोनां लक्षणो कह्यां . ॥ घोडाजेवा साथळवाळा धनवान , हरिणजेवा साथळवाळा राजा, घ. ने जामा साथळ्वाळा दीर्घायुषी तथा ध्यानी थाय . ॥ ३० ॥ सिंह घने व्याघजेवा साथळ धन धने कीर्ति देनारा थाय बे, घने रोमवान साथळ गरीबा थापे ।३।शृ. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) गालसमजंघा च । लक्ष्मीस्तेषां न जायते ॥ मीनजंघः स्वयं लदमी । संपामोति न संशयः ॥ ४० ॥ स्थूलजंघाश्च सूक्ष्माश्च । श्रियं जुजंति मानवाः ॥ ऊष्ट्रजंघा ना ये च । नित्यं नोगविवर्जिताः ।। ४१ ॥ काकजंघा नरा ये च । तेषां राज्यं विनिर्दिशेत ॥ खरवृषप्तमा जंघा । स्वल्पसौख्यप्रदायिनी ॥ ४२ ॥ इति गालजेवी जंघावाळाने लक्ष्मी मळ्ती नथी, बने मत्स्यजेवी जंघावाळो खरेखर पोतेज लक्ष्मी मेळवे . ॥४०॥ जामी जंघावाळा बने ठौंगणा मनुष्यो लक्ष्मी भोगवे , यने नट जेवी जंघावान हमेशां वैभवथी रहित रहे. कागमाजेवी जंघावाबनने राज्य मले, घने खर अथवा वृषजजेवी जंघा अल्प सुख देना. री थाय . ॥४१.४शा एवीरीते सामुद्रिकशा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) सामुळे जंघालादणं ॥ एकरोमो भवेडाजा । दिरोमो धनवान नवेत ॥ विरोमो पंमितो ज्ञेयो । बहुरोमे द. रिद्रता ।। ४३ ॥ हंसहस्तिसमा गत्या । पुरुषाश्व नराधिपाः ॥ वृषचाषशुकानां च । गति! गवतां नवेत् ।। ४४ ॥ नूनं दिशति स्त्रीलो ट्यं । काकोबुकसमा गतिः ।। द्रव्यबुधिविही. मां जंघानां सदण कह्यां . एक रोमवाळो राजा, बे रोमवाळोधन वान, त्रण रोमवाळो पंडित, घणारोमवाळो ग. रीब होय . ॥ ४३ ॥ हंस अने हाथीजेवीं चालथी मनुष्य राजा थाय बे, बळद चापथ ने पोपटनी चाल वैभव थापनारी याय . ॥४॥ कागमा भने घुवडजेवी चालथी मनुष्य स्त्रीलंपट द्रव्यहीन तथा बुधिरहित, त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) नोऽसौ । दुःखशोकनयंकरः ॥ ४५ ॥ श्वानोष्ट्रमहिषाणां च । खरसूकरयोस्तया ॥ गतिर्येषां समाख्याता । ते नरा जाग्यवर्जिताः ॥ ४६ ॥ इति गतिलदणं । दक्षिणावर्तलिं. गेन । नरो हि पुत्रवान नवेत ॥ वामावर्तेन लिंगस्य । नरः कन्याजरप्रदः ॥ ४ ॥ स्थू. लकृष्णेन लिंगेन । दुःखवान हि नवेन्नरः ॥ था दुःखी बने शोकसहित थाय ॥४५॥ जे मनुष्यो कुतरा जंट पामा खर घने सूवर जेवी चालवाळा मनुष्यो भाग्यविनाना होय ॥ ४६ ।। एवीरीते गतिनी लक्षण कह्यांडे ॥ दक्षिणावर्तलिंगवालो होय ते बहु पुत्रवाळो, अने वामावर्तलिंगवालो बहुकन्यावालो थाय ३. ॥ 9 ॥ जामा बने श्याम लिंगवाने मनुष्य दुःखी थाय ने, अने भ्रमरवान तथा वां. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) यलिभिर्वक्रलिंगैश्च । पुरुषाः सुख गोगिनः ।। ॥ ४ ॥ एकैकधारलिंगेन । नरो जवति पा. र्थिवः ॥ द्विधारे धनवांश्चैव । बहुधारा दरिद्रता ॥ ४५ ॥ मीनगंधेन शुक्रेण । धनपुत्रयुतो नवेत ॥ हविर्गधेन शुक्रेण । गर्वाब्यो जाय. ते नरः ॥ ५० ॥ मधुगंधेन शुक्रेण । नराः स्त्रीजनवल्लभाः ॥ पद्मगंधे नवेद् नृपः । मु. का लिंगवाळा पुरुषो सुखी थाय . ॥ ४॥ एक धारवान लिंगवाळो मनुष्य राजा, बेघा रवाळा लिंगवाळो धनवान्, अने बहु धारवा ला लिंगवाळो दरिद्र होय . ॥ ४ए॥ मा. बलां जेवी गंधवाळा वीर्यवाळो धन धने पु. बवाळो, अने हविषनी गंधवान वीर्यवाळो म. नुष्य अभिमानी थाय ॥५०॥ मधुगंधी वीयेवाळा पुरुषो स्त्रीने प्रिय, कमलगंधीवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) रागंधेन पार्थिवः ।। २१ ।। लाक्षागंधे नवेत् स्तेनो । मांसगंधेन तस्करः ॥ व्यसनी रक्तगंधे च । मद्यगंधेन दुःखितः ॥ ५२ ॥ कटुगंधेन शुक्रेण । पुरुषो पुर्नगो जवेत् ॥ दा रगंधेन शुक्रेण । नरा दारिद्र्यनाजिनः || १३|| पयोवर्णेन शुक्रेण । नरो जवति पार्थिवः ॥ श्यामवर्णेन शुक्रेण । देहभोगी भवेन्नरः || र्यवाळो राजा, तथा मदिरागंधी वीर्यवाळो पण राजा थाय बे ॥ ५१ || लाख ने मांसस - रखी गंधवाळा वीर्यवाळो चोर, रुधिरगंधी वी र्यवाळो व्यसनी, छाने मद्यगंधी वीर्यवाळो दुः खी थाय बे. ॥ ५२ ॥ कटुगंधी वीर्यवाळो दुजोगी, ने दारगंधी वीर्यवाळा पुरुषो दरिद्री श्राय बे ॥ ९३ ॥ दुधजेवा वर्णवाळा वीर्यवाको मनुष्य राजा, अने श्यामवर्णी वीर्यवाळो · • Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com · Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ॥ ५४ ॥ समपादोपविष्टस्य । भूमि स्पृशति मेहनं ॥ स भवेद् खितो निपं । दारिद्येण च पीडितः ॥ ५५ ॥ समपादोपविष्टस्यांगुल्यो स्पृशति मेहनं ॥ ईश्वरं तं विजानीया. त् । सुखिनं जोगिनं तथा ॥ १६ ॥ सिंहव्या. घसमं यस्य । ह्रस्वं नवति मेहनं ॥ भोगवा. न स हि विज्ञेय-स्तथा तुरगमेहनः ॥१७॥ शरीरनो जोगी थाय . ।। ५४ ॥ सरखा प. ग राखी बेसतां थकां जेनुं मेहन जमीनने घडके ते हमेशं दुःखी अने दरिद्री थाय जे. ॥ ५५ ॥ पलांठी वाळी बेसतां थकां जेना मे. हनने यांगळी अडकती होय तेने द्रव्य. वान सुखी तथा वैनवी जाणवो. ॥ २६ ॥सिं. ह व्याघ धने अश्वनी पेठे जेनुं मेहन टुंकुं होय ते नोगी जाणवो. ॥ २७ ॥ एवीरीते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) इति लिंगाधिकारः.॥ प्रवाल स्निग्धरक्तं च । शोणितं यस्य दे. हिनः ॥ राजानं तं विजानीया-निर्जरत्वं म. हाबलं ।। १० ।। पद्मपत्रसमं यस्य । देहे भ. वति शोणितं । जनयेद्बहुधा कन्या । दुःखितश्च सदा भवेत् ॥ ५५ ॥ गोमायुसदृशं य. स्य । श्वानोष्ट्रमहिषस्य च ।। स नवेद् . लिंगाधिकार कह्यो .॥ जे पुरुषतुं रुधिर प्रवाळजेवं चीकत. था रातुं होय ते अजर अने महाबळवान् रा. जा थाय . ॥ २७ ॥ जेनां शरीरमां कमल. ना पत्रजे, लोही होय तेने त्यां घणी कन्या जन्मे बे, अने हमेशां दुःखी थाय . ॥ ५५ ॥ जेनुं लोही शियाळ कुतरा जंट या थवा पाडाजेq होय ते हमेशां दुःखी बने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) खितो नित्यं । धनहीनो न संशयः ॥ ६० ।। इति रुधिरलक्षणं ॥ विस्तीर्णा च कटिः स्निग्धा । शुभा प्रौढा प्रशस्यते ॥ निर्मासास्थि. कटिईया । नराणां दुःखदायिनी ॥६१॥ सिं. हव्याघसमा येषां । कटिस्ते दंगनायकाः ॥ र. दोवानरतुल्या च । कटियेषां न शोनना ॥ ॥ ६ ॥ इति कटिलदणं ॥ मृगोदरो नरो दरिडी थाय . ॥ ६० ॥ एवीरीते रुधिरनां लक्षण कयां . ॥ मनुष्यनी विशाल प्रौढ यने मृदु काट वखणाय ने. मांसरहित तथा हाडकांवाळी कटि दुःख थापे ।। ६१॥ सिंह घने व्याघजेवी जेननी कटि होय ते सेना. पति थाय , पण रादास धने वानरजेवीक. हिसारी कहेवाती नथी. ॥ ६॥ एवीरीते कटिनां लक्षण कह्यां ने. ॥ हरिण मोर अने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) धन्यो । मयूरोदरसन्निभः ॥ मंरकसदृशश्चैव । स भवेत्पार्थिवो नरः ॥ ६३ ॥ व्यघोदरो गज. पतिः । शृगालोदरमध्यमः ॥ नरः सिंहोदरो यस्तु । धनधान्यसमृधिनाक् ॥ ६४ ॥ वर्तुः ला चातिगंनीरा । नानिः पुंसां प्रशस्यते ॥ नत्तान विरला नाभिः । सदा दुःखप्रदायिनी॥ ॥ ६५ ॥ इति नानिलदणं ॥ जनतोपचितौ देमकांजेवा नदरवाळो मनुष्य पूज्य तथा रा. जा थाय . ॥३३॥ व्याघवा पेटवाळो गज पति, शियाळजेवा पेटवाळो मध्यम, बने सिंह जेवा पेटवाळो धनधान्य घने वैनववाळो थाय ३. ॥ ६४ ॥ गोळ अने अतिगंनीर नानि वखणाय , तुंची अने वांकी नाभि हमेशां दुःख देनारी थाय जे. ॥६५ ।। एवीरीते ना. निनां लक्षण कयां . ॥ जे मनुष्यने जंचां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) येषां । घनस्निग्धौ फ्योधरौ ॥ स नरो मैथुने शूरो । नोगवांश्च तथा नवेत् ॥ ६६ ॥ उन्न. तौ नैव स्निग्धौ च । शिथिलौ च पयोधरौ।। निर्मासौ च कुरूपौ च । ते नरा दुःखना जि. नः ॥ ६७ ॥ विस्तीर्ण हृदयं यस्य । मांसलो पचितं समं ॥ शतायुस्तं विजानीया-द्रहुनाग्यं महाधनं ।। ६७ ॥ इति हृदयलदणं ॥ मांसल जामां अने मृदु स्तन होय ते मैथुः नमा शूरो तथा जोगी थाय . ॥ ६६ ॥ जे. ना स्तन नीचां, चिकाश विनानां पोचां मांसरहित बने कुबमां होय ते दुःखी थाय जे. ॥ ६७ ॥ जेनुं हृदय विशाल मांसल पुष्ट य. ने.सी, होय ते बहु नाग्यवान महाधनवान धने शतायुषी थाय जे. पण एवीरीते हृदयनां. सदण कह्यां . सिंहजेवी पीठवाळो धननो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) सिंहपृष्टो नरो यस्तु | धननोगी विनिर्दिशेत् ॥ कूर्मपृष्टो भवेद्राजा | घनसौभाग्यवान् ॥ ६५ ॥ इति पृष्टलक्षणं ॥ प्रलंब बाहुर्विज्ञे यो | नरः सर्वगुणान्वितः ॥ हस्वबाहुवे - हासो | परकर्मकरः स्मृतः ॥ ७० ॥ इति वाहुलक्षणं ॥ यस्य मीनसमा रेखा । कर्मसि - हिः प्रजायते ॥ धनाढ्यस्तु स विज्ञेयो । ब. जोगी ने काचवा जेवी पीठवाळो धन सौजाग्याने वैभवथी नरपूर राजा थाय बे. ॥ ६५ ॥ एवीरीते पीठनां लक्षण कह्यां बे. लांबा हस्तवाळो माणस सर्व गुणवाळो होय बे, टुंका हाथवाळो बीजानुं काम करनार दास बने बे ॥ १० ॥ एवीरीते बाहुनां लक्षण कह्यांबे ॥ जेना इस्तमां मत्स्यजेवी रेखा दो - य वे कार्यसाधक धनाढ्य छाने बहु परिवार 1 I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com · Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) हुपुत्रो न संशयः ॥ ११ ॥ चामरमथवा वज्रं । करमध्ये तु दृश्यते ।। वाणिज्यं सिध्यते त. स्य । पुरुषस्य न संशयः ॥ १२॥ पद्मं वायदि वा शखः । कोष्टा गारश्च दृश्यते ॥ पुरुषस्य करे यस्ये-श्वरस्तु स च कथ्यते ॥१३॥ चक्राकारो ध्वजाकारः । पद्माकारश्च दृश्यते । सर्व विद्याप्रधानत्वाद् । बुद्धिमान स नवेन्नरः॥ ॥ १४ ॥ शूलं पाणौ भवेद्यस्य । म च धर्मवाळो जाए.वा. ।। ७१ ॥ जेना हाथमां चामर यथवा वज्र देखाय ते वेपारमा खरेखर सफ ळ थाय . ॥७२॥ जेना हाथमां पद्म शंख अथवा मार देखाय ते धनवान् थाय .॥ ॥ ७३ ॥ जेना हायमां चक्र ध्वजा अथवा प. मनो याकार देखाय ते सर्व विद्यासंपन्न बने बुद्धिमान थाय . ॥१४॥ जेना हाथमांत्रि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (23) सो नवेत् ॥ यज्ञधर्म च दानं च । देवं द्वि. जंस पूजयेत् ।। १४ ॥ शक्तिस्तोमरवाणे च । यस्य हस्ततले भवेत । स्थश्चाप्ययवा छत्रं । भूपतिः स च कथ्यते ।। १५ ।। अंकुशं कुंडलं चक्रं । यस्य पाणितले भवेत ।। तस्यराज्यं विनिर्दिष्टं । सामुद्रिवचनं यया ॥ १६ ॥ वृदो वायवा शक्तिश्व । करमध्ये तु दृश्यते॥ शूळ होय ते धर्मिष्ट थायजे, घने ते यज्ञ दा. न अने देव ब्राह्मणनी पूजा करे . ॥४॥ जेनी हथेळीमां जावू तोमर बाण स्थ अथवा बत्र होय ते राजा थाय . ॥ १५ ॥ जेना हाथमां अंकुश कुंमल अथका चक्र होय तेने . राज्य मले ने, एम सामुद्रिकनुं वचन ने. ॥ ॥७३॥ जेना हाथमां वृद अथवा शक्ति दे. खाय ते धनवान बने मोटो अधिकारी प्रधान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 20 ) अमात्यं तं विजानीया - नवंनं महाधिपं ॥ ॥ 99 ॥ यस्य पाणितले रेखा | कनिष्टामूल संस्थिता || ऊर्ध्वं याति प्रदेशं च । शनमा - युजवेन्नरः || 95 || द्वितीया धनरेखा च । तृतीया कुलवर्धनी ॥ यदि पूर्णा तदा पूर्ण । बिन्ना तु वेदितं वेत् ॥ ७७ ॥ यस्य तु मपिबंधाये । रेखा चोत्तरगामिनी ॥ सुभटं तं थाय बे. ॥ 99 ॥ जेना हाथमां उचली यां गळीथी नीकळी वेठ जंचे जती रेखा दोय ते एकसो वर्षना व्यायुष्यवाळो थायंडे ॥७८॥ बीजी रेखा धननी ने बीजी रेखा कुळन वृद्धि करनारी होय बे, ते रेखान जो पूर्ण होय तो संपूर्ण यने त्रुटक दोय तो त्रुटक फळ थापे बे. ॥ ७५ ॥ जेना मणिबंध या गळथी 'नीकली उत्तर तरफ रेखा जती दीय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( () विजानीया । रत्नराज्यप्रदायकं ॥ ८० ॥ अंगु टाग्रे च या याति । ब्रूते नृपतिमुत्तमा । सा च तर्जनिकाप्राप्ता । राज्यं साम्राज्यमुत्तमं ॥ ॥ ८१ ॥ सैन्याधिप्यं धनेशत्वं । मध्यमांगुलि. गा तथा ॥ यनामिकां पुनः प्राप्ता । धनवंतं समादिशेत् || २ || ऊर्ध्वरेखा करे यस्य । वयांगुलितया खड्ड || नानासुखममासीनः । ते रत्नाने राज्य देनारो सुट थाय वे. ॥ ॥ ८० ॥ वळी ते अंगुसुत्री जनी होय तो राज्य, छाने तर्जनिकासुधी जनी होय तो साम्राज्य मले बे. ॥ ८१ ॥ वचखीसुत्री जनी हो. य तो सेनापति ने धनवान, तथा छानामिकासुधी जती होय तो पण धनवान थाय बे ॥ ८२ ॥ जेना दाथनी त्रणे यांगळीमांथी ऊर्ध्वरेखा निकळती दोय ते नानाप्रकारमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) सामुद्रवचनं यथा ॥७३ ।। सुखिनं सुजगं चा पि। सा च प्राप्ता कनिष्टिकां ।। सर्वदा च करोत्येव । यद्यबिन्ना शुकरा !! GH | कनिष्टा. मुलरेखाया । यावत्योऽवश्व रेखकाः ॥ तावं. यो महिलास्तस्य । पुरुषस्य विनिश्चिताः ॥ ॥ ५ ॥ ति सामुद्रिके रेखालक्षणं ॥ __ ग्रीवा च वतुला यस्य । पूर्णकुंजसमा भसुखवाो थाय ने, एवु मामुद्रनुं वचन . ।। .॥ ३ ॥ ते जो अविचिन्न टचली प्रांगळी. सुधी जती होय तो त शुन करनारी सुखी तथा नाग्यवान करनारी थाय . IIGU॥ ट. चली बांगळीनी नीचेनी मुळ रेखानी वचमां जेटली नानी रेखान होय रे तेटली स्त्रीन ते पुरुषने थाय . ॥५॥ एवीरीते सामु. दिकने विषे रेखानां लदण कह्यां .॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) वेत् ॥ पार्थिवः स तु विज्ञेयो। धनवान् धनसंकुलः ॥७६॥ दीर्घा ग्रीवा शिखग्रीवा । कं. बुग्रीवायवा पुनः ॥ शुरुग्रीवा च कृष्णा च । वजनीयाश्च ताः समाः ।। 09 ॥ इति ग्रीवा. लदणं ।। शंडस्कंधो गजकंवः । कदवीस्कंध एव च ॥ सर्व ते पार्थिा ज्ञेया । महाभोग महावनाः ।। 60 || इति स्कंबरदाणं ॥ चं. जेनी मोक पूर्णकुंगसरखी गोळ होय ते धनवान अथवा राजा थाय . ॥ ६॥ लांबी नंची वांकी पोपटजेवी अने काळी ए सर्व डोक वर्जवा योग्य . ॥७॥ एवीरीते मो. कनां लदण कह्यां . ॥ जे मनुष्यो शंड ह. स्ती अथवा केळजेवी स्कंधवाळा होय ते महा वैनव बने धनवान राजा थाय . | | एवीरीते स्कंधनां लक्षण कह्यां . ॥ जेनुं मा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) उबिंबोपमं वक्र । धर्मशीलं सदा भवेत्॥ मृ. गमूषकवाश्च। ते नग भाग्यवर्जिताः ॥ए|| करालवक्रा पाश्च । धनहीनाः प्रकीर्तिताः ।। हयवक्रा नरा ये च । दुःखदारिद्यरोगिणः । ॥ए०॥ इति मुखलदाणं ॥ यस्य गलौ हि संपूर्णी । पद्मपत्रसमप्रगौ ॥ भोगवान स नः रश्चैव । मर्वविद्याधरः स्मृतः ॥ १॥ सिंहः होठं चंद्रनां बिंबसमान होय ते धर्मिष्ट, अने हरिण अथवा उंदरजेवा महोडांवाळा मनुष्यो दुर्भागी होय . | 0 || भयंकर मुखवाळा धनरहित गजा थाय . घने घोडाजेवा मु. खवाळा मनुष्यो पुःखी दरिद्री बने रोगिष्ट थाय . ॥ ५० ॥ एवीरीते मुखना लक्षण कहां.॥ जेना बन्ने गालो नरेला तथा कमळना पानजेवा वर्णवान होय में ते मनुष्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) व्याघगजेंद्राणां । कपोलौ सदृशौ यदि ।। सु. खी जोगी नवेन्नित्यं । बहुपुत्रश्च जायते ।। ॥२॥ रक्ताघरो नृपतिः स्या-क्रोष्टः ख. सु दुःखितः ।। स्थूवान्यामधरान्यां च । नरा अयं दुखिताः ॥७३॥ श्योष्टलदणं ।। क. दंबपुष्पसंकाश-दंतकैर्जुपतिः स्मृतः ॥ रदो. जोगी तथा सर्वविद्यासंपन्न थाय . ॥ १ ॥ जेना गाल सिंह व्याघ अथवा हाथीजेवा हो. य ते मनुष्य हमेशां सुखी जोगी तथा बहु पुत्रवाळो थाय . ।। ए॥ लाल होठवाळो राजा, वांका होठवाळो दुःखी बने जेना बन्ने हो जामा होय ते घणो दुःखी होय . ॥ ०३ ॥ एवीरीते होउनां लदाण कहां में. कदंबनां पुष्पसरखा दांतवाो राजा थाय में, थने सदस अथवा वानरजेवा दांतवाळा हा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४) वानरदंताश्च : गिय क्षुधा तृषार्दिताः ॥४॥ हस्तिदंना महाद। । हयदंता गुणान्विताः ।। कराल रुदादाने-नंग हि दुखजीविनः ॥ ॥ए५ ॥ द्वात्रिंशद्दशनै राजा । एकत्रिंशश्च जोगगन ।। त्रिद्विदशनैश्चात्र । नरा हि दुः. खर्जीविनः । (ए ॥ इति दंतलदणं ॥ कृ. 5णा जिह्वा भवेद्यस्य । स नरो उखपाधनः मेशां चरन ग्रने सम्पयी पीडाय ने ॥४॥ हायी अने अश्वजेबा मोटा दांतवाळा गुणी, घने भयंकर तथा बुखा दांतवाळा दुःखी हो. य ॥ ॥५॥ ३१ दांतवाळो राजा, ३१ दां. तवाळो जोगीने ३० दांतवाळा मनुष्यो दु:खी होय . ॥ ६ ॥ एवीरीते दांतनां ल. क्षण कां ॥ जेनी जीभ यतिकाळी हो. य ते दुःखी, अने काळाश पमती जीभवाळो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) श्यामलायां तु जिह्वायां ! संभवेत्पापकारकः || 9 || स्थूलजिह्वान्तं क्रम-स्ते नरो नृषिः । श्वेतजिह्वा नरा ये तु । शौचाचारविवर्जिताः ॥ ८ ॥ पद्मपत्राभजिह्वस्तु | जोगवान् मिष्टनोज पः ॥ रक्तजिह्वा वेद्यस्तु । विद्यालकीं मनुवन्॥९॥ - ति जिह्वालक्षणं ॥ कृष्णाग्ये ते । जंपापी थाय वे. ॥ १ ॥ जामी जी जवान क्रूर छाने यसत्य बोलनाग ढोय वे, पने घोळी जीजवाळा परिवाचार विनाना होय वे, ॥ ५८ ॥ कमलनां पानजेव। जीनवाळो भोमी तथा मिष्टान्न खानारो थाय वे अने खाल जी गवाळो विद्या ने लामो मेलवे वेः ॥ ९ ॥ एवीरीते जीननां लक्षण कह्यां वे. जे मनुष्यो काळं ताळवांवाळा दोय ते कुल. al: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) वंति कुलनाशकाः ॥ पद्मपत्रसमं ताबु । स नरो नृपतिर्भवेत् ।। १०० ।। श्वेतताबुन ये च । धनवंतो भवति ते ॥ रक्ततालुतरा ये तु | घननाजो जवंति ते ॥ १ ॥ पीतताबुनरा ये च । भवंति ते नराधिपाः ॥ जोगिनस्ते भवेयुश्च । सामुद्रवचनं यथा ॥ २॥ इति ता सुलक्षणं ॥ हंसस्वरो नरो धन्यो । मेघगंजीनो नाश करे वे, छाने कमळनां पत्र सरखां तालवांवाळो राजा थाय ते ॥ १०० ॥ श्वेत ताळवांवाळा धनवान ने खाल ताळ्वांवाळो पण धनवान थाय बे. ॥ १ ॥ पीळां ताळवांवाळा राजा व्यथवा जोगी थाय बे, एम सामुद्रनुं वचन बे ॥ २ ॥ एवीरीते ताळुनां खदा ण कां बे. ॥ इंसजेवा स्वरवाळो पूज्य, मेघजेवा गंभीर स्वरवाळो राजा ने भ्रमरजेवा • Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) रपार्थिवः ॥ भृगस्वरा नरा नित्यं । जोगवंतो, नरेश्वराः ॥ ३ ॥ क्रौंचस्वरा नरा ये च । ना. ग्यो नाति ते ॥ खरकार वरा ये च । नि: र्धनाः पापकारिणः ॥ ४ ॥ इति स्वरलकणं। पार्थिवाः शुकनाशाः स्यु-दोघनाशाश्व भोः गिनः ॥ इस्वनाशा नरा ये च । धर्मशीलांश्च तान विदुः ॥ ५॥ हस्तिनाशा नरा ये च । स्वरवाला मनुष्यो हमेशां वैनवी राजा थाय.. ॥ ३॥ क्रौंजेवा स्वरवाला जाग्यवान थाय बे, घने जे खर तथा कागमाजेवा स्वस्वाला होय रे ते निर्धन अने पापी थाय . ॥४॥ एवीरीते वरनां बदण कह्यां . ॥ पोपटजेवी नासिकावाला राजा, लांबी नासिकाबाटा नोगी, घने टुंकी नासिकावाला धर्मिष्ट जा. एवा. ॥५॥ वली हाथीजेवी नासिकावाला, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) पीतवर्णाश्च ये नगः ॥ पीतनाशा नराश्चापि। सर्वे ते जनवल्लभाः ॥ ६ ॥ स्थूलनाशा नरा ये च । निर्धाम्ने नवंत हि ॥ वक्रनाशास्तथा चापि । सामुद्रश्चन यथा ॥७॥ येषां वक्रा च दीना च । नाशिका मुखमध्यगा । ते सर्व दुःखिनो ज्ञेया। धनगीलविवर्जिताः ॥ ॥ इति नाशिकानदाण ॥ रक्तादा ध. पीळा वर्णवाला श्रन पळी नामकागाला सने प्रिय थाय ने. ॥ ६ ॥ जाडी थने वां की नासिकागला निधन थाय ने, एम सा. मुद्रनुं वचन ॥9॥ जननी नासिका वां. की अने दीननावरात्री होय ते दुःखतथा. धन अने श्राचाररहित जाणवा. ॥ ॥ ए. वीरीते नासिकानां लक्षण कह्यां . ॥ राती लांखवाला धनवान, वाघजेवी यांखवाला खी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) नवंतश्च । व्याघादा प्रकोपिनः ।। कुर्कुन: दाः सदारिद्या। मृगकाः मुखिसस्तया॥ बिडालहमनेवाश्च । भवंति पुरुसायमाः ॥ म. युरनकुन्नादाश्च । ते मो मध्यमाः स्मृताः ॥ ॥ १० ॥ इति वसुन कणं । इवकर्णः सदा भोगी। दोर्घकर्णश्व मध्यमः ।। रोमकर्ण म. नुष्याश्च । मर्व ते सुग्वभोगिमः ॥ ११ ॥ इ. जण. कूफमा नेवी नांवाना रोव, अते ह. रिणजेवी अांखाला सुवो होय . ॥ ए॥ बिलाडी अने हंसजेवी आंखगता अषम हो. य, धने मोर तया नाळ यांजेवी यांखा. सा मध्यम पुरुष होय . ॥ १०॥ एवीरीते यांखनां लक्षण कयां . ॥ टुंका कानवालो हमेशां भोगी, लांग कानबातो साधारण, थने रोमसहित कर्णवालो सुख भोगवनार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) ति कर्णलदणं ॥ ललाटेनार्धचंडेण । संनवेत्पृथिवीपतिः।। विपुलेन ललाटेन । विद्याव्यश्च भवेन्नरः॥१॥ घटपेनाथ ललाटेन । स्वस्पायुर्जायते नरः ॥ जनतेन ललाटेन । धनलानः प्रजायते॥ ॥ १३ ॥ विषमेण ललाटेन पुखिनो जर्जरा नराः ॥ परकर्मरता नित्यं । प्राप्यंते वधबंधनं थाय . ॥११॥ एवीरीते काननां लक्षण . अर्धचंद्रजेवा कपाळ्वाळो पृथ्वीपति, थने विशाळ ललाटवाळो विहान होय . ॥१॥ टुंका कपाळवाळो खल्पायुषी, घने जंचा क. पाळवाळो धननो लान मेळवनारो थाय ने. ॥ १३ ॥ वांका कपाळवाळा दुःखी, जर्जरित, परसेवक, घने बंधनवाळा थाय . ॥ १४ ॥ जेना कपाळमां त्रिशूळ अथवा भाडं देखाय 7 .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) ॥ १४ ॥ त्रिशूलं कुलिशं चापि । ललाटे य स्य दृश्यते ॥ ईश्वरं तं विजानीयात् । प्रमदाजनवल्लनं ॥ १५ ॥ पंचरेखः शतायुः स्यादशीतिश्चतुर्जिता । जवंति त्रीणि षष्टिः स्याद् | हान्यां च विंशतिद्वयं ।। १६ ।। रेखजेन ललाटेन । विंशतिः परिकीर्तिता ॥ यरेखक ललाटेन | स्वल्पायुर्जायते नरः || १८ || इति ललाटणं || कुटलैः स्फुटितै रुदौः ते धनवान ने स्त्रीजने प्रिय थाय बे. ॥ ॥ १५ ॥ जेना कपाळमां पांच रेखा दोय ते शतायुषी, चार रेखा होय ते एंशी वर्षनो, णं रेखावाळी साठ वर्ष नो, बे रेखावालों, चाः लीस वर्षनो छाने एक रेखावाळो वीश वर्ष नो त्रः थाय बे, छाने रेखारदित कपाळवाळो माणस स्वल्पायुषी थाय वे. ॥ ९६-९८ ॥ एवीरीते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com -- Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) । स्थूलैः केशैश्च तस्करः ॥ दुःखितः पुरुषो ज्ञेयः । झुधा च परिपीमितः ॥ १५॥ विरला मधुराः केशाः । स्निग्धा भ्रमरसन्निभाः ॥ म. धुवर्णाश्च यत्केशा-स्ते सर्वे कमलाप्रियाः॥ ॥२०॥ इति सामुद्रिके नरखदणानि ॥ - ललाटनां लक्षण कह्यां . ॥ जेना केश वां. का फुटेला बुखा अने जाडा होय ते माणम चोर सुःखी ने कुधाथी पीमायेलो रहे . ॥ १५॥ जेना वाळ बूटा मधुर चीकणा य. ने थलि तथा मधुजेवा वर्णवान होय ते स. घला धनवान थाय . ॥२०॥ एवीरीते सा. मुद्रिकशास्त्रमा पुरुषनां सदाणो समाप्त थयां. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) अथ स्त्रीलदाणानि कथ्यते-यथा कि. ज्ञायते रत्नं । शुनाशुनमिति स्मृतं ॥ वदंति च प्रशस्तं च । स्त्रीणां वक्ष्येऽथ बदणं ॥२१॥ मातरं पितरं चापि । वातरं देवरं तया ॥ भः तारं च विना नारी। रक्षणरहिता सदा ॥श्शा हस्तपादौ परीक्षेत । चंगुलीश्च नखांस्तया ।। पाणिरेखाश्च जंघाश्च । कटिं नानिं तथैव च हवे स्त्रीनां लदाणो कहे जे-जेम र. लनी परीक्षा करीने शुभ अशुन विगेरेनो निर्णय थाय , तेम स्त्रीननां लवणोनो निर्णय कहुं बु ॥ २१ ॥ माता पिता नाश देवर तथा गार विनानी स्त्री रक्षणरहित कहेवाय . ॥५॥ हाथ पग यांगन नख हायनी रेखा जंघा केम नानि ऊरु उदर स्तन सुजा गती कपाळ मस्तक केश रोमरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३ ॥ करू चोदरपृष्टिं च : स्तनौ कलभुजो तथा ॥ वदःस्थललाटं च : शिरः के. शांस्तथैव च ॥ २४ ॥ रामगजि स्वरं वर्ण । यवमत्स्यादिकांस्तथा ॥ एवं परोक्षेत । का न्याशास्त्रविशारदः ॥ ५ ।। पादौ ममांगुलि. स्निग्धा । म्यां यदि शिष्टतौ ॥ कोमलौ चैव रक्तौ च । सा कन्या गृहह्ममिनी ॥२६॥ अंगुष्टांतेन रक्तेन रिं च मन्यते॥ य. जि स्वर वर्ण जा अने मत्स्य विगेरेनी क. न्याशास्त्रना जाणकार परोदा करवी जोए. ॥३-२५ ॥ जे कन्याना पग सरखी थांगलीवान कोमळ बने लाल वर्णना मिपर पडता होय ते कन्या घरने शोजावनारी था. च मे ॥ १६ ॥ जेणीनो अंगुठगनो डोरी तो होय ते नर्तारने मानिती थाय , जेनां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) ल्पवृत्तैः पति हन्या-दहुने पवा ॥२७॥ उन्नतैश्चंद्रवत्सौख्यं । मांसलैश्च थे। च॥ शु. चिनिः पद्मवर्णेश्व । पुत्र य. श्रिाः प्रदाः ॥ ॥ २७ ॥ चक्र पद्मं वजछत्रपतिको व. र्धमानकः ॥ यासां पादेषु दृसः । ज्ञेयास्ता राजयोषितः ॥ २५ ॥ यस्या गरे रेखा। तर्जनीगा प्रकाशते ॥ नारं । ते शीघं। बांगळां थोडां गोळ होय ते पतिने मा. रनारी थाय ने. अने विशेष गोळ बांगळां वाली पतिव्रता होय . ॥ २७ ॥ जेना पण जन्नत मांसल पवित्र अने पद्मजेवा वर्ण गळा होय ते पुत्रवती तथा लक्ष्मी देनारी थाय . ॥ ॥ जेणीना पगमां चक पद्म धजा उत्रं अथवा स्वस्तिक देखाय ते गणी थाय . ॥शए॥ जेणीना पानां नळीयांमां तर्जनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) प्रिया नर्तुस्तथा च सा ॥ ३० ॥ यस्या न स्पृशते नृमि - मंगुली च कनिष्टिका || भर्तारं प्रथमं हत्वा । द्वितीये सुप्रतिष्ठिता ।। ३१ ।। यस्यास्त्वनामिका वा । तां विदुः कलहप्रियां ॥ भूमिं न स्पृशते यस्या । सा पतिय गामुका ॥ ३२ ॥ अंगुलिं च व्यतिक्रम्य । यवागळ रेखा प्रकाशती होय ते भर्तारने तु रत मेलवे बे, छाने जो गरने तेवी रते होय तो ते प्रियाने तुरत मेलवे वे. ॥ ३० ॥ जेणीनी टचली यांगळी जमीनने यमकती न होय ते पहेला भर्तारने मारीने बीजा न तपासे प्रतिष्ठित थाय वे. ॥ ३१ ॥ जेणीनी नामिका टंकी होय ते कलहप्रिय दोय छे, छाने जेणीनी ते यांगळी जमीनने न ध्यमकती दोय ते बे पति जोगवनारी थाय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) स्याः पादप्रदेशिनी ॥ कुमारी रमते जारं । यौवने स्याश्च का कथा ॥३३॥ नन्नतपाणिईशीला । महापार्णिदरिद्रिणी ॥ दीर्घपा. र्णिः परिक्लिष्टा । समपाणिः सुशोजना ॥ ॥ ३४ ॥ इन्वांगुष्टापदं दत्ते । बंधनं कलहप्रि. या | निगूढगुल्फा या नारी । सा नारी सु. . ॥ ३२ ॥ जेणीनी टचली आंगळी बना मिकायी मोटी होय ते स्त्री कुमारी आस्थामां पण यारने नोगवे , तो युवावस्थामां तेणोनी शो वात कहेवी ? ॥ ३३ ॥ चीपानीवाळी व्यभिचारिणी, मोटी पानीवाळी गरी. ब, लांबी पानीवाली दुःखी, अने सरखी पा. नीवाळी स्त्री मारी होय . ॥३४॥ टुंका अं. गुवाशकीमतहप्रिय तया संकट देनारी थाय ३, था . नाना गुटफ गंभीर होय ते सुख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) खमेधते ॥३५॥ इति नारीणामंगुलिलदणं. . पीनस्तनौ घनौ स्निग्धौ । रोमराजिविव र्जितौ ॥ कुंकुं समाकारौ । यस्याः साल. नते सुखं ॥३॥ रोमणिः स्वर्णवर्णैश्च । ना. नौ च त्रिवली धृता ॥ नरेंद्रस्य तु सा भार्या । नवतीह न संशयः ॥ ३७ ।। कूर्मपृष्टं नगं वधारे . ॥ ३५ ॥ एवीरीते स्त्रीनो यांगळी. जनां लदाण कह्यां . ॥ जे. स्त्रीना स्तन कण पुष्ट स्निग्ध वाळर. हित अने हाथीना कुंगजेवा याकारना होय ते सुख मेळवे . ॥ ३६॥ जेणीना रोम सुः वर्णजेवां वर्णवाळां होय , तथा जेणीनी नातिमां निवली होय ते राजानी स्त्री थाय , तेमां जरा पण संदेह नथी. ॥३७॥ जे. स्रोनी योनि काचवानी पीठजेवी, काळी, नि.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) यस्याः । कृष्णं स्निग्यं च शोभनं ॥ धनधा. न्यवती सा च । पुत्रारं प्रपूरते ॥ ३० ॥ निर्मासं चैव दीर्घ च । नगं शुष्कंसिरायुतं॥ दारियं दुःखमानोति । दौयिं सेति निर्दिः शेत् ॥ ३५ ॥ जनार्दक्षिणैः पार्वैः । स्त्रियः पुत्रप्रदाः स्मृताः ॥ वामोन्नतभगा या च । सा च कन्यां प्रसूयते ॥ ४० ॥ अश्वस्स दलसंका. व अने शोन्निती होय ते धन धान्य अने संततिवाली होय . ॥ ३० ॥ जेणीनी योनि मांसरहित लांबी सुकायेली तथा सिरामहित होय ते स्त्री दारिद्य अने दुख भोगवे .॥ ॥३५॥ जे स्त्रीनी योनिनी जमणी बानु . ची होय ते पुत्रोनो, घने जेनी योनिनी डाबी बाजु ऊंची होय ते पुत्रीनने जम्म बापे .॥४०॥ जेणीनी योनि पीपच्यामा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० ) शं । गृह्यं गूढमतिस्थितं ॥ यस्याः सा सुन गा धन्या पुण्यवखाप्यते ॥ ४१ ॥ व्या तः सुभगो यस्या । भगस्योपरिमस्तके ॥ त स्याः प्रजायते पुत्रो । धनवान्यसमन्वितः ॥ ॥ ४५ ॥ कूर्मपृष्ट गजपृष्टा । समकोमल रोमि ही । विवर्णा पद्मपत्रा च । पडेते सुनगा भ गाः || ४३ || खरोरुाररोमा च । शुष्का दीपानजेवा व्याकारी हाय ते स्त्री जी पूज्य तथा पुण्यवानोनेज लन्य होय वे. ४१ | जेनी योनिना उपल्ला जानवर शुभ गोनकार होय ते धन धान्नयी उरपूर पुत्रने ज न्म व्यापारी थाय वे ॥ ४२ ॥ काचवानी पीठजेवी १, हाथीनी पीठजेवी २, सीधी ३, कोमळ रोमवाळी ४, विवर्ण ए, छाने पद्मनां पत्रमरखी ६, ए व जातनी योनि सारी कहे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र्घा च नाशिका ॥ संकटा विरला चैन पडे. ते मध्यमा भगाः || १४ | गुह्यांते तितकं य. स्थाः । श्यामं वा कुंकुमोपमं ॥ अथवा ददि. णे जागे । प्रशस्ता सा निगद्यते ॥ ४५ ॥ इति स्त्रीभगलदएानि ॥ घान्यगंधा च या नारी । निकांधा च वाय ॥ ४३ ।। खरजेवा आकरा वाळवाळी सूकी. लांबी नाकजेवा आकारनी सांकमी त. था विरल एजातनी योनि मध्यम कहेवा. य. ॥ ४ ॥ जे स्त्रीनां गुह्यती अंदर श्र. थवा जमणे पमखे श्याम अयवा लाल ति. लक होय ते सारी कहेवाय ॥ ४५ ॥ए. वीरोते स्त्रीनी योनिनां लक्षण कह्यां ॥ लां श्रायुष्यनी अभिलाषा राखनारे धान्य घने लींचमाना गंधाळी स्त्री प्रथमथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) या भवेत् ॥ वजनीया प्रयत्नेन । यदी चिरजीवितं ॥४६॥ दीरगंधां त्यजे कन्यां । तथैव कटुगंधिलां ।। रक्तगंधां त्यजेत्कन्यां । सा क. न्या सुखदायिनी ॥ ४ ॥ गोमुत्रहरिताला. मो। गंधो यस्याः प्रसूयते । दुष्टगंधा च या नारी । तां नारी परिवर्जयेत् ॥ ४ ॥ तुंबी. पुष्पसमो गंधो । यस्था लादोपमस्तथा । त. त्यजी देवी. ॥ ४६ ॥ यजेवा गंधवाळी कड. वी गंधवाळी तथा लोहीजेवा गंधवाळी कन्या सजी देवी, कारण ते दुःख देनारी थाय . ॥ ४ ॥ जे स्त्रीनी गंध गोमूत्र अयवा हडतालजेवी होय ते दुष्टगंधा कहेवाय रे,त. था तेवी स्त्रीने त्यजी देवी. ॥ ४ ॥ जे स्त्री. नी गंध तुंबीपुष्पजेवी अथवा लाखजेवी होय तेनो भर्तार दुःखी थाय ने, कारणके ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) स्या दुःखी नवेद्भर्ता । यतः सा दुःखदायिनी ॥४॥ चंपकादिकपुष्पाणां । यदि गंयो भ. वेस्त्रियः॥ सुनगा सा सृने नित्यं । नारंवशर्तिनं ।।५०॥ या च सुंदरीगंधा । मत्स्यगंधा च या जवेत ।। ननांगा व या नारी। तां नारी परिवर्जयेत् ॥ ५१ ॥ इति सामुद्रिके स्त्रीणां गंवलदाणं ॥ नितंबदेशमुत्तां । वि. सुःख देनार होय . ॥ ४५ ॥ जे स्त्रीती चंपक विगेरे पुष्पनेवी गंध होय ते भरिने वश करनारी थाय ने, ॥ ५० ॥ उबुंदरजेवी गंधवाळी मत्स्यजेवी गंधाळी बने जय गंध. वाळी स्त्री त्यजी देवी. ॥ २१॥ एवीरीते सा. मुद्रिकशास्त्रमा गंधनां लदाण कह्यां ॥जे स्त्रीनो नितंबप्रदेश ऊंचो बने विस्तारवालो होय तथा जेनो मध्यभाग निकलीसहित त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९४ ) स्तीर्ण शस्यते स्त्रियः ॥ मध्यं वलित्रयोपेतं । वृशं च सुगं मतं || २ || गंजीरा नामकायस्था । दक्षिणावर्तकान्विता । समांसला च स्निग्धा च । सा नारी सुखमेधते ॥ ५३ ॥ नाजेरथो भवेद्यस्या । लांछनं मशकोपमं । कुंकुमोदक संकाशं । प्रशस्ता सा निगद्यते ॥ ॥ ५४ ॥ मंरुककुदिका नारी । न्यग्रोधपरिमंगला ॥ एकं जनयते पुत्रं । स च राजा था पानटो ढोय ते स्त्री खाय वे. ॥ एशा जेणीन। नाजि गजीर दक्षिणावर्ती पुष्ट ने स्निग्य होय तं स्त्री सुख वधारे वे. ॥ ९३ ॥ जे स्त्रीनी नागिनी नीचे कंकुता मशकजेवुं चिन्ह होय ते सारी कहेवाय ते ॥ ९४ ॥ जे खोनुं नदर देडकांजेवुं ने वडजेवा मंमलाकारनं होय ते नारी एकज पुलने ज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५५ ) भविष्यति ॥ ९५ ॥ स्तनौ च शिथिलौ यस्या । लघु च विग्लो पुनः ॥ निर्मानौ चै निस्तेजौ । ताः स्त्रियो न हि शोभनाः ||१६|| स्तनौ च सुदृढो यस्याः । पीनोन्नतियुनो समौ ॥ ममांमलौ च स्निग्धौ च । सा सौभाग्यवती भवेत् ॥ ५७ ॥ यस्याः स्तनौ घरात्रिमा रोमराजविवर्जितो ॥ हस्तिनाशे जंवा म यावे, जे राजा थाय ते ! ५५ ॥ जे स्त्रीनां स्तन पोत्रां नानां बुगं मांमरदिन ते निस्तेज दोय ते खोन सारी होती न थी. ॥ ५६ ॥ जेलीनां स्तन दृढ करा ऊं: चां सीवां पुष्टाने स्लिम दोय ते स्त्री सो घाग्यवती दोय ते. ॥ २१ ॥ जेणीनां स्तन जाडां स्लिम ने रोमरहित दोय. तथा जेनी जंघा हाथीनी सुंदजेवी होय ते स्त्री सुखी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) सा पढ़ी लगते सुखं ॥ ९८ ॥ यस्याः पयोधरे वामे । मितं तिलकं नवे ॥ कर्णे कं ठे सुपुत्राया । सा कन्या सुखदायिनी ॥ ए॥ ग्रीवया संक्या चंडी | दरिद्रा हस्वया तथा ॥ कुलस्य नाशिनी नारी । दीर्घया जायते पुनः ॥ ६० ॥ यस्या ग्रीवा सुवृत्ता स्या – खात्र यसमन्विता ॥ दक्षिणावर्तसंकाशा । सा भा थाय वे. ॥ ५८ ॥ जे स्त्रीनां मात्रां स्तन का न पने कंठपर तिलक होय ते सारा पुत्रवाळी पने सुख देनाएं) थाय वे ॥ एए ॥ लांबी डोकवाळी खीजण, टुंकी मोकवाळी द रिड), ने दर्घ डोम्वाळी कुळनो नाश क नारी थाय े ॥ ६० ॥ जे स्त्रीनी मोक गोक, त्रण रेखायी सहित, छपने दक्षिणावर्ति दोय ते अधिक नाग्यवाळी थाय छे. ॥ ६१ ॥ www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 9 ) ये नाधिका भवे ॥ ६१ ॥ रक्तजिह्वा तु या नारी । सासुखदायिनी ॥ नित्यं वर्धयते पुत्रैः । सुकुमारा तु मोहिनी ॥ ६२ ॥ श्वेतायां संहरेद्वंधून् । मखिनायां धनदायं ॥ श्यामायां कलढो नित्यं । वंशवेदं विनिर्दिशेत् ॥ ॥ ६३ ॥ श्वेतेन तालुना दामी । दुःखिना क्रूनाबुना ॥ पनिजक्ता प्रिया पत्यू | रक्तनाजे त्रांनी जीभ रानी होय ते स्त्री सुकोमल, सुंदर सुख देनाएं छपने पुत्रवती थाप ते. ॥ ॥ ६२ ॥ श्वेन जीभवाळी पोताना पाइने संघरे, मलिन जोगवा धननो प करे, अने काळी जीभवाळी हमेशां कलह करे, था वंशनो नाश करे. ॥ ६३ ॥ श्वेताळवांवाळी दामी, श्याम ताळबाळी दुःखो ने खाल ताळयांवाळी पतिव्रता तथा सुशोभित 9 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com त Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) सुः सुशोभना ॥ ६ ॥ विषमा दशना यस्या । विरला ॐःखित व मा ॥ स्थूवावेशमवामोति । लघुश्वतममाः शुत्राः ॥ ६५ ॥ उनि देनलक्षणं ॥ प्राएलकणं-सरोमो चाति. लंबा च । यस्या उष्टपुटी स्त्रियः ॥ विषमा चातिस्थूलो सा। पनिघ्न वनिता भवेत् ॥६॥ यस्या नष्टयं रक्तं । विगेमं च समं पुनः ।। होय. ॥ ६४ ॥ जे दांत विषम अने बुटा बुटा होय ते दुवी यार . जामा दां. तवाळा दुःख पामे, अने नाना घोळा नथा सोश दांत वखरा . ॥ ६५ ॥ एवीरीते दांतनां लक्षण कह्यां . ॥ हवे होठमां ख. क्षण कहे -ने स्त्रीना होठ वाळशळा य. तिलांजां विषम बने अतिजामा होय त स्त्री पतिनो नाश करना थाय . ॥ ६६ ॥ जे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (पए) सरसं स्निग्यतायुक्तं । मा भर्तुः सुखकारिणी॥ ॥ ६ ॥ श्योटलदाएं ॥ दर्पण नाशिका. ग्रेण । नारी भवति कोपिनी ॥ हस्खेन तुजवेदासी । परकर्मकग नदा ॥ 8 ॥ विकटा नाशिका यस्या । वैधव्यं ममुपैति मा ॥ ना. तिदीर्घा न विती । मरता सुखकारिणी॥ जीना बन्ने होठगे लाल, वाळविताना सीधा रसवाला अने स्निग्य होय ते पतिने सुख दे. नारी थाय . ॥ ६७ ।। एवीरीते होठमां ल. क्षण कह्यां . ॥ जे स्वनी नामिकानो था. गतो जान लांघो होय ते कोधिष्ट. अने जे. नोटुको होय ते बीजानां काम करता दा. सी थार . ।। ६३ । जे नामिका बां. की होय ते विषा था, श्रने वा लांबी नहि तेम बहु जाडी नहि एकी नासिक सुख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) ॥६५॥ इति नाशिकावदाएं ॥ पिंगनेत्रों भवेन्नारी । ह्यप्रिया स्वप्रियस्य च ॥ दुःशीला सा च विज्ञेया । वैधव्यं लगते खलु ।।७०॥ नयने में करे यस्या । दशने चातिवंचने ॥ कुटिला सा च विख्याना । नारीलक्षणवेदि तिः ॥ ११ ॥ यस्याःतु हममानाया । गन्न भ. वति कूपका ॥ न मा भतुगृहे तिष्टेत । स्व. करनारी थाय . ।। ६० ॥ एवीगत नामित कानां लक्षण कह्यां . । पाळी थांखवाट) स्त्री पोनात पनिने अप्रिय व्यनिचारणी. त था विश्वा थाय . ॥ १० ॥ जे स्त्रोनी यां. ख केंकर, अने जोवामां अतिचंचल होय ते कुटिल होय , एम स्त्रीलक्षणना जाणकारो कहे . ।। ७१ ॥ जे स्त्रीनां हसतां थकां गा. समां खाडो पडे ते स्त्री स्वबंदी थने व्यभि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६१ ) वृंदा कामचारिणी ॥ १२ ॥ इति नारीनेत्रलक्षणं ॥ द्वितीया चंद्रमंकाश - युगा सम नाशिका | ऋजंगुलिः प्रीतिकरा । पत्युः संपत्करी सदा || १३ || य मुखवणं - पू. र्णिमाचंद्रमंकाशं । सुपुष्टपरिमंडलं ॥ यस्या मुं खं सुदीपं च । मा च लक्शीरिवापरा ॥ १४ ॥ चारणी थर थकी पोताना पतिना घरमां रहेनी नथी । २ ॥ एवने स्रीनां प्रांखनां लक्षण कह्यां वे ॥ जे स्त्रीनी बन्ने नमरो बीजना चंद्रजेव]. नाक सोधुं छपने आंगलीन कोमल दोय ते पतिने सुख करनारी तथा धननी वृद्धि करनाएं। थाय वे ॥ १३ ॥ दवे मुखनां लक्षण कहे बे-जे स्रनुं मुख पूर्णिमाना चंद्र जेवुं, पुष्ट, गोळ, छाने होय ते स्त्री धनाने संततिवाळी • तेजखी थाप ठें, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) यथा मुखं तथा गुह्यं । यया चकुस्तथा भगः ॥ यथा हस्ती तथा पारा । बाहुघा तथैव च ॥७५ ॥ अथ खलावदाणं-ललाटं गु. लं यस्याः । शरीरे समवा । निर्मलं सु. समं चापि । सायुःसाख्यवनपदा ।। १६ ॥ य. स्यात्रीणि प्रलंशनि । ललाट मुदरं नगं । मा. विमास्यते त्रीण । श्वशुरं देवरं पति 137| ॥ १४ ॥ मुखवु गुह्य. अांख नेवी यानि. हा. थजेवा पग. तथा बाहुजेवी जंघा वखणायचे. ॥ १५ ॥ हवे ललाटमलक्षण कहे - स्त्रीन ललाट त्रण अांगल ऊंचुं, रोमर हत, निमल अने मीधुं होय तं सुख अन वन देना थाप. ॥ १२ ॥ जेण नां का न. दर अने योनि एत्रणेलांशं होय ते बनुः क्रमे श्वशुर दोयर बने पति एवणेने मारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६३ ) लवाटे श्वशुरं र्हति । उदरे देवरं तथा । मे र्तारं च भगे हन्या - तां कन्यां परिवर्जयेत ॥ ॥ १८ ॥ युग्मं ॥ पथ केशलक्ष्णं - स्थूल केशा पतिनी स्या - दीर्घकेशा धनप्रदा ॥ परुयैः कपिलैः क्रूरा | स्निग्धकेशा च शोभना ॥ ७५ ॥ - थ स्वरवदाएं – पिकहंमस्वरा रम्या । या नाJ. 11 93 || Aia SG1:318) ageà, aiबा पेटवाळी दीर, अन लांबी योनिवाडी पाताना जनरने मारे वे, एनी कन्याने बोमी देव ॥ 9 ॥ ढवे केशनां लक्षण कहे वे - जामा केशवाळी पतिने मारनारी, लांबा केशवाळी धन देनार), खडववना ने पीळा केशवाळी कर, ाने नि केशवाळी शोजिती दोय वे. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) री दीघलोचना ॥ यस्य गृहे समागबे-चद्गृहं पुण्यन्नाजनं ॥ ७० ॥ हंसस्वरा कौंत्र वग । गको क्लिनादिनी ॥ चत्रवाकरा या सा । हेमधान्या दवर्धती ॥ १ ॥ तीव. खरातिगंजीरा । मलावण्या च सुस्वरा ॥ श्र; टौ सा जनयेत्पुत्रान् । हेमगन्यसमन्विताः ॥ 11.30 ॥ हवे वरनां लदाण कहे -को. यस घने हमजे। स्वराळी. म्य थने दीर्घ लोचनवाळी स्त्री जेने घेर श्रावे ते घर पु. एयशाली गणाय. ॥ ७० ॥ हंम बौंच व. मर कोयल अने चत्र वाकीजेवा स्वस्वाळी स्त्री सुवर्ण धान्य विगेरे वधारनारी थाय: ॥ ॥ १ ॥ तीव्र तथा अतिगंभीर स्वस्वाळी य. ने सुंदर स्त्री धन धान्य वधारनारी तथा या. पुत्रने जन्म अाफ्नाधाय ..।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) ॥२॥ यायतौ श्रवणो यस्याः । समौ च सुकुमारको । जुवो चंद्रायुधाकारौ। सा कन्या सुखनागिनी ॥ ३ ॥ यथावर्तलक्षणं-क. ट्यावर्ते वरा नारी । नान्यावर्ते मृतात्मजा ॥ पृष्ठावर्ता पतिघ्री स्या-त्तस्मादेतां विवर्जयेत् ॥४॥ पृष्टवामे तथावर्तो । यस्या भवति नि. जे स्त्रीना कान लांचा सीधा अने सुकुमार होय, तथा जेनी जमर चंडायुधजेवी होय ते मन्या सुखी थाय . ॥७३॥ हवे यावर्तना उदाण कहे -जे स्त्रीनी केम्पर यावर्त होय ते सारी, नान्निार यावर्तवाळी मरेला गोकरांने जन्म अापनारी, अने पीउपर था. वर्तवाली पतिने मारनारी थाय , तेथी तेने यजी देवी. ॥ ४ ॥ जे स्त्रीने माबे पमखे यावर्त होय ते घणा पुस्खो साथे रमनारी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) श्चितं ।। बहुनी रमते पुंभि-खितान कु रुते च तान ॥ ७५॥ अथ रोमलक्षणं-य. स्या रोमाणि जंघायां । मुखं च विकृतं भवेत् ॥ रोमन्निस्तित्तिरावर्ते । शीघं जदयते पति।। ॥ ०६ ॥ नद्रछपिमिका या च । वराहनख. रोमका ।। अपि राजकुने जाता । दासत्वमा धिगबति ।। ७॥ यस्यास्तु हृदये नार्या । तथा तेनने मुख करनारी थाय . ॥५॥ हवे रोमनां लदण कहे जे-जेणीनी जंघा. मां रोम होय, मुख वांकुं होय, तथा जेणीने वान्यी यावर्त पमेलो होय ते तुरत पतिनः दाण करनारी थाय . ॥ ७६ ॥ जे स्त्रीती पानी नंची होय, तथा वराहजेवा नख घने रोम होय ते राजकुळमां जन्मेली होय तो पत्रा दासी थाय . ॥ 6 ॥ जे स्त्रीना. हृद - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) रक्तं च तिलकं भवेत ।। लांछन वा नवेद्रक्त । सा नारी शोभना भवेत् ।। ७ ।। लनते वित्तसंपन्न । पतिं सा वशवर्तिनं ।। पुत्रत्रयं प्र. सूते सा । पुनः कन्यावतुण्यं ॥ ७॥ यु. ग्मं ।। स्तने वामे च कृष्णानं । लांछनं ति. लकं यदि ॥ क्षिप्रं बैकयमानोति । जायते चिरदुःखिता ॥ ५० ॥ यस्या गमनमात्रा। यपर लाल तिलक अयवा लांउन होय ते सारी कहेवाय ने, वळी ते धनवान तया वश रहे तेवा पतिने मेळवनारी, तेमज त्रण पुत्र घने चार कन्याने जन्म यापनारी थाय . ।। 10-॥ जे स्त्रीना डाग स्तनपर श्या: म लांउन अथवा तिलक होय ते तुरत वि. धवा थाय ने, घने लांचा काळसुधी दुःखीर. हे . ।। ९० ॥ जेणीना चालवा मातमीजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) भूमिकपः प्रजायते ॥ सर्वातिवैरजननी। सा. मुद्रवचनं यथा ॥ ए१ ॥ कंपते चरणो यस्या । मुखं वा भयसंकुलं ॥ धनधान्यविहीना सा । खदारिद्यदायिनी ॥ ए॥ मृदंगी मृाजंघा च । मृगादी ज मृगोदरा ॥ गत्या हं. ससमा नारी। राजपत्नी भविष्यति ॥ ए३ ॥ यथ वर्णलदाणं-कृष्णा श्यामापि या नारी मीन कंपती होय ते सर्वनी वैरी थाय ने, ए. म सामुद्रनुं वचन . ॥ १ ॥ जेणीना पग कंपता जोय, अथवा मुरु भयभीतजेवू होय ते स्त्री धनधान्यरहित तथा सुख यने दा. रिद्य यापनारी थाय . ॥ ए॥ कोमळ अंगवाळी, हरिणजेवी जंघा यांख घने नद. खाळी, तथा हंसजेवी चालवाळी स्त्री राजप ली थाय . ॥५३॥ हवे वर्णना लक्षा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । गौर च कनकप्रभा ॥ स्निग्धांगा स्निग्धनः यनी । सा नारी लनते सुखं ।। ए ॥ स. लाटे दृश्यते यस्याः । कृष्णं तिलकमुत्तमं ।। सा पंच जनयेत्पुत्रान् । धनधान्यसमाकुलान् ॥ए५॥ यस्याश्च हास्यमानाया। ललाटे स्व. स्तिको भवेत् ॥ वाहनानां सहस्रस्य । चाधि पतिः पतिर्नवेत् ॥ ६॥ अथ समुदायगुणा. कहे के काळी, कानश पडती, गौरवर्णवाळी, कनकजेवा वर्णाळी, स्निग्ध अंग तथा नेत्रवाळी स्त्री सुख मेळवे .॥ एy॥ जे. पीना कपाळमां नत्तम श्याम तिलक देखाय ते धनधान्यथी भरपूर पांच पुत्रने जन्म प्रा. पे .॥ए५ ॥ जे स्त्रीनां हसतां थकां क. पाळपर स्वस्तिक देखाय तेनो पति हजारो वाहनोनो अधिपति थाय .॥५६ ।। हवे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .90) गुणवणन-पीनोरु पीनगल्ला लघुसमदशना पद्मनेत्रांतरता । किंवोटा तुंगनाशा गज गति गमना दक्षिणावर्तनाभिः ॥ स्निग्धांगी चारु वेपा पृथुमृदुजघना सुस्वरा चारु लामा । भर्स तस्याः दितीयो नवति च सुनगा पुत्रमाना च नारी ॥ ॥ ऊरू स्तनौ कटिकरप्रति. गुण अवगुण विगेरेनु साथे वर्णन थाय ने -जे स्त्री कग्नि गती, कठिन गाल, नानो भने सीधा दांत, कमळजेवा अांखना रेडा, बिंबजेवा होठ, ऊंची नासिका, हायणीजेवी चाल, दक्षिणावर्ती नाभि, स्निग्ध अंग, सुं. दर वस्त्र, गंजीर अने कोमळ योनि सुंदर स्व. र, अने सारा प्रकाशवाळी होय तेनो पति राजा थाय रे, धने ते पुत्रवती थाय .॥ ॥ ॥ ऊंचां स्तन, रोमरहित केड अने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मास्त्वरोमा । अश्वस्थपत्रसदृशं विपुलं चं गुः ह्यं ॥ श्रीणीललाटमुरकूर्मसमुन्नतं च । गूढो मणिश्च विपुलां श्रियमातनोति ॥ ॥३. ति स्त्रीणां पोडशलदाणानि ॥ पिंगादी कूपगला कठिनकरतला स्थल घोर्ध्वकेशी । रुदादी कक्रनाशा प्रविरलदशहथेली, पीपाना पानजेवं विशाळ पुह्य, का. चबाजेवां ऊंचां श्रोणी ललाट बने साथळ, तथा गंजीर मणि बहु धन प्राप्त करावे .॥ ॥ ॥ एवरीते स्त्रीउनां सोळ लदाणों कह्यां ने.॥ जे स्त्री पीळां नेत्र, खाडावाळा गाल, कठीन हथेळी, जाडी जंघा, चंचा केश, सुखी श्रांख, वक्र नासिका, बुटा बुटा दांत, काळी ताळु होठ घने जीभ, शुष्क अंग, नमेली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ना कृष्णताबोष्टजिह्वा ॥ शुष्कांगा सनात. कुचयुगविषमा वामना चातिदीर्घा । सा नारी वर्जनीया धनसुतरहिता पोडशालदाणाव्या ।। ॥ एवं ॥ यस्याः पाणितले रेखा । प्राकार ध्वजतोरणा ।। अपि दासकुने जाता । नरें लभते पतिं ।। ए ॥ अंकुश कुंडलं चक्रं । नमर अने विषम स्तनवाळी होय, तथा ग. गणी अथवा यतिलांबी अने शीळ लदाण: रहित होय ते धन अने पुत्रविनानी थायने, माटे तेने त्यजी देवी. ॥ एए॥ जेणीना हस्तमां प्राकार ध्वजा बने तोरणना याकार. नी रेखा होय ते हलका कुळमां जन्मेली हो. य तो पण राजपनी थाय . ॥ ४ ॥ जे. णीना हस्तमां अंकुश कुंडल घने चक्रना याकारनी रेखा होय ते पुत्रने जन्म बाप. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) यस्याः पाणिनो भवेत् ॥ पुत्र प्रपूयते नारी । नरें लभते पति ॥ ५५ ॥ यस्याः करत. ले रेखा । मयूरबत्रमन्निना ।। नृ पतिमवा मोति । दैश्वर्यमपि वर्षयेत ॥ ६ ॥ मंडलं चक्रपद्मं च । पूर्ण कुंनं च तोरणं ॥ यस्याः करत ने छत्रं । राजपत्नीत्वमाप्नुयात् ।। ए७॥ वृत्ता च मेखला यस्या । नानिदेशोऽपि वर्तुनारी तथा राजपत्री थाय . ॥ ५५ ॥ जे. णीना हस्तमां मयूर अथवा बनायाकारनी रेखा होय ते राजपत्नी थाय ने. अने वैभव वधारे . । ए६ ॥ जेणीना हस्तमां गोचकार चक्र. पद्म पूर्ण कुंभ तोरण अथवा बत्र होय. ते राजपत्नी थाय . ।। ए ॥ जे. पीनो कटि तथा नाभिनो प्रदेश गोलाकार होय ते स्त्री कल्याण करनारी तथा राजपत्नी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (98) लः ॥ सा स्त्री जति कश्याग।। पति नृपः तिमाप्नुयात् ॥ ७ || अंतर्द्धवोललाटे वा । मशकेन मन्विना ।। रक्तेनापि कपोले वा । वामे मिष्टानबीनवेत ।। 00 || रोमैः कनक वणैश्च । नानौ च त्रिवलीयता ।। नरेंद्रस्य च भार्या सा। वतीह न संशयः ॥१००॥ हृदोमनख केशेषु । दंगोष्टनयनेषु च ॥ स्नेहो न थाय . ॥ एG || जे स्त्रोनी भमरन) नीचे कपाळपर अग्रवा मारा गालपर लाल मश होय ते मिष्टान्ननी ज्ञावाळी होय . || जेणीना रोम सुवर्णवर्णा, तथा नाभिमां त्रि. वली होय ते नि संशय राजानी राणी थाय . ॥ २०० ॥ जेणीनां हृदय रोम नख केश दांत हो भने अांखमां चिकाश न होय ते स्त्री खराव जाणव). ॥ १ ॥ जे स्त्रीने थो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५) विद्यते यासां । ज्ञेयास्ता ह्यशुभाः खलु ॥१॥ अल्पस्वेदा चाटपरोमा । निद्रानोजनार्वता ।। गात्रेषु न च रोमाणि । नारीणां लदाणं शुज ॥ ३ ॥ रक्तजिह्वा मृगादी च । या नारी मृगलोचना ॥ कृशोदरी गजगतिः । स्त्रीणां लदाणमुत्तमं ।। ४।परानुकूतां परपाकपाकि नीं। विवादशीला स्वयमर्थचारिणी ॥ अाक्रमो परसेवो थोडा रोम थोडी निषा बने स्वल्य जोजन होय तथा जेणीना अवयवो रो. मरहित होय ते सागं लदानी स्त्री जाण: वी. ॥ १-३ ॥ लाल जीन्न, मृाजेवां नयन, कृष नदर बने हस्तिनीजेवी चाल ए सपळां स्त्रीननां नत्तम लदाणो कह्यां ॥४॥बी. जाने अनुकूळ, बीजानी रसोश करनारी, क लह करनारी, पोतेज धननो व्यय करनारी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) दिनी सप्तगृहप्रवेशिनी । त्यजेच्च भार्या दशपुत्रपुत्रिणीं ॥ ५ ॥ अतिदीघ च ह्रस्वा च । ह्यतिस्थूला कृशा तथा ॥ अनिकृष्णा च रुद्रा च । तादृशी वैरकारिणी ॥ ६ ॥ विकटांगुलिका नारी । बिद्रपादा च या भवेत् ।। सा स्त्री वैरप्रिया ज्ञेया । सामुऽवचनं यथा ॥ ७॥ य. स्याश्च रोमशौ जघौ । रोमशौ च पयोधरौ ॥ रडती, सात घरे जानारी. अने दश संतति. वाळी स्त्री त्यजी देवी. ॥ ५॥ अतिलांबीय तिटुंकी, अतिजामी, अतिशुष्क, अतिकाळी. अने अतिजयंकर स्त्री तेवाज प्रकारना कलह करनार) होय . ॥ ६ ॥ जे स्त्रीनी यां. गळी विकट होय, अने जेणीना पगमा लि. द्र होय ते वैग्नेि मळी जाय , एम सामुद्र नुं वचन . ॥ ॥ जे स्त्रानां सायळ स्तन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 99 ) पृष्टोपरि च रोमाणि । शीघ्रं वैकयमाप्नुयात् ॥ ८ ॥ मातुलिंगसमो हस्तौ । संबमानस्तनइयं ॥ यदा तदा न संदेहो । द्वितीयं कुरुते पतिं ॥ ५ ॥ महांगुली महानामा । महावका घटना | महानखी तु या नारी । सदैव खिनी जवेत ॥ १० ॥ व्यावर्तात्रय विद्य ते । ललाटे उदरे भगे । नदते सादरापने पीठ रोमवाळ होय ते तुरत विश्वा थायवे, ॥ ८ ॥ जे स्त्रीता हस्त मातुचिंगजेवा पने स्तन लांबा होय ते बीजो पति करे एमां जरा पण संशय नथी, ॥ ९ ॥ मोटी यांगळीज, मोटी नासिका, मोटुं मुख, जामां स्तन ने मोटा नखवाळी स्त्री हंमेशां दुःखी थाय ने ॥ १० ॥ जे स्त्रीनां कपाळ पेट प · थवा गृापर व दोय ते तुरतज पोताना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com · Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (90) न्नूनं । देवरं श्वशुरं पति ॥ ११ ॥ लंबोदरी स्थूलशिरा । रक्तादी पिंगलोचना ॥ पतिनो. पार्जितं द्रव्य-मन्येन सह भदते ॥ १ ॥ नदीनाम्नी च या नारी। फल नाम्नी च या न. वेत ॥ देवीनानी जवेन्नित्यं । नैव सौख्यार्थ कारिणी ॥ १३॥ तीर्थनानी च या नारी। त. न्मुखं न विलोकयेत् ।। बहराणि या नारी। दीयरने श्वशुरने अने पतिने भदाण करनारी थाय . ॥ ११ ॥ दीर्घ उदर जाडा केश त. था राती बने पीळी अांखवाळी स्त्री पोताना पतिए नपार्जित करेवू द्रव्य बीजासाथे मली खाय . ॥ १२ ॥ जे स्त्री- नाम नदी फल अथवा देवीना नामपर होय ते सुख प्राप. नारी थती नथी. ॥ १३ ॥ जेनुं नाम तीर्थना नामपर होय तेनुं मुख जोवु नहि, तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (JU) तां नारों परिवजयेत ॥ १४ ॥ अदत्ता वर्णज्येष्टा या । लदणैः परिवर्जिता ॥ न तां परिणयेत्साधुः । सामुद्रवचनं यथा ॥ १५ ॥ मातरं पितरं हंति । वातरं देवरं पनि । क. न्योक्तलदणैरेन्नि-स्तस्मालदणमीदयते॥१६॥ .ददा तुष्टप्रियालापा । पतिचित्तानुगामिनी ।। जे स्त्रीन नाम बहु अदरोवाळु होय ते पण त्यजी देवी. ॥ १४ ॥ कन्यादान नहि देवा. येली, मोटी, अने लदवितानी कन्याने सा. रा पुरुषे परणवी नहि एम सामुऽनुं वचन वे. ॥ १५ ॥ उपलां लद गवाळी कन्या माता पिता नाश् दीयर बने पतिने मारनारी थाप ने, माटे लदाणो तपासवां ॥ १६ ॥ दद सं. तोष) मधुर बोलनारी, पतिना मनप्रमाणे व तनारी, जाने योग्य समये योग्य कार्य कर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) कालौचित्यकरी नित्यं । या सा लक्ष्मीरिवापरा ॥ १७ ॥ बाला खेलनकैः काले । दत्तैर्दिव्य. फलाशनैः ॥ मोदते यौवनस्था तु । वस्त्रालं. करणादिभिः ॥ १७ ॥ हृष्येन्मध्यवयाः प्रौटा। रतिक्रीमासुकोशलैः ।। वृधा तु मधुरालापै #रवेण तु रज्यते ॥ १५ ॥ युग्मं ॥ षोडश वर्षीया बाला । त्रिंशता नवयौवना ।। पंचपं. चाशता मध्या । वृक्षा स्त्री तदनंतरं ॥ २० ॥ नारी स्त्री बीजी लदमीजेवी होय . ।। १७ ।। स्त्री बाल्यावस्थामा रमकडां घने फळयी, यु. वानीमां वस्त्रालंकारविगेरेथी, मध्यवयमां र. तिकीमामां चतुर पतिथी, अने वृधावस्थामां मीठी वातो घने मानथी राजी थाय .॥ ॥ १०-१५ । सोळ वर्षसुधीनी बाय, त्रीश वर्षसुधीनी युवती, पंचावन वर्षसुधानी प्रौढा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) ज्ञातव्यं विबुधैः स्त्रीणां । लक्षणं चापलक्षणं ॥ कुलवृद्धिर्यशोवृद्धि - लक्ष्मी वृविद्यतः ॥ २१ ॥ अथ स्त्रीणां जातयः कथ्यंते – पद्मिनी चित्रणी चैव । हस्तिनी शंखिनी तथा ॥ तत्र दृष्टिविधानेन । परीच्या स्त्रविदः ||२२|| पद्मिनी बहुकेशा च । स्वल्पकेशा च दस्तिनी ाने त्यारी स्त्री वृद्धा कहेवाय बे ॥ २० ॥ प्राज्ञपुरुषोए नारीना लक्षण धने अपलक्षण तपासवां, जेथी कुळ यश पने लक्ष्मीनी बृ· हि थाय ॥ २१ ॥ · • वे स्त्रीनी जाति कहे बे-पद्मिनी १, चित्रण २, हस्तिनी ३ तथा शंखणी ४, ए चार प्रकारनी स्त्रीजनी माह्या पुरुषोए दृष्टिविधानथी परीक्षा करखी. ॥ २ ॥ घणा केशवाकी पद्मिनी, स्वल्प केशवाळी हस्तिनी, लां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) ॥शंखिनी दीर्घकेशा च । वक्रकेशा च चि. वणी ॥ ३ ॥ पद्मस्तनौ च पद्मिन्या-श्वक्रस्तनी च हस्तिनी॥ दीघौ स्तनौ च शंखि. न्या-श्चित्रणी च समस्तनी ॥ २४ ॥ पनि नी शुभ्रदंता च । दंतोन्नत्या च हस्तिनी ।। शंखिनी दीर्घदंता च । समदंता च चित्रणी॥ ॥२५॥ पद्मिनी पद्मगंधा च । मधुगंधा च वा केशवाळी शंखणी, अने वांका केशवाळी चित्रणी जाणवी. ॥ २३ ॥ पद्मजेवां स्तनवा. ळी पद्मिनी, चक्रजेवां स्तनवाळी हस्तिनी, दां वां स्तनवाळी शंखणी, धने सरखां स्तनवाळी चित्रणी होय . ॥ २४ ॥ श्वेत दांतवाळी प. मिनी, जंचा दांतवाळी हस्तिनी, लांबा दांत. वाळी शंखणी, धने सरखा दांतवाळी.चित्रणी होय . ॥१५॥ कमळजेवी गंधवाळी पनि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) हस्तिनी ॥ शंखिनी वीरगंधा च । मत्स्यगंधा च चित्रणी॥ २६ ॥ हंसस्वरा च पशिनी। गूढशब्दा च हस्तिनी ॥ शंखिनी रूदाशब्दा च । काकशब्दा च चित्रणी ॥ २७ ॥ पंकजासनलयेन पद्मिनी। वेणुदाहृतपदेन शंखि. नी॥ स्कंधपादयुगलेन हस्तिनी। नागरेण नी मधजेवी गंधवाळी हस्तिनी, दुधजेवी गंध. वाळी शंखणी, अने मत्स्यजेवी गंधवाळीच. वणी जाणवी. ॥ २६ ॥ हंसजेवा स्वरवाळी पभिनी, गंजीर स्वरवाळी हस्तिनी, बुखा स्ववाळी शंखणी अने कागमाजेवा स्वरवाळी चित्रणी होय . ॥ २७॥ पद्मिनी कमला. सनथी, शंखणी पहोच पगथी, हस्तिनी स्कं. धपर पग राखीने अने चित्रणी गमे ते प्रका. स्थी रतिसुख भोगवे . ॥ ॥ मुखनी सु. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (08) स्मयंति चित्रणी॥ २० ॥ पग्रिन्या मुखसौर न्य-मुर सौभाग्यहस्तिनी ॥ चित्रणी कटि. सौनाग्या । पादसौभाग्यशंखिनी ॥ ए॥ पद्मिन्यमलकेशा च । अ॒र्ध्वकेशा च हस्तिनी ॥ चित्रणी लंबकेशा च । दृढकेशा चशंखि नी॥३०|| पद्मिन्यः प्रेम वांति । द्रव्यं वांछति हस्तिनी ॥ चित्राण्यो मानमिति । कलहं वां. गंधवाळी पद्मिनी, छातीनी मुगंधवाळी हस्ति नी, केडनी सुगंधवाळी चित्रणी, अने पगनी गंधवाली शंखणी कहेवाय . ॥ श्ए ॥ प. वित्र केशवाळी पद्मिनी. ऊंचा केशवाळी ह. स्तिनी, लांबा केशवाळी चित्रणी, अने कठण केशवाळी शंखणी होय . ॥ ३० ॥ प. मिनी प्रेमनी अभिलापा राखे , हस्तिता द्रव्यनी, चित्रणी माननी, घने शंखणी करू Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (०५) नति शंखिनी ॥ ३१ ॥ इति सामुद्रिके पुंस्त्री. लदाणानि ॥ ॥ इति सामुद्रिकशास्त्रं समाप्तं ॥ णी कलहनी अभिलाषा राखे . ॥ ३१ ॥ एवीरीते सामुद्रिकशास्त्रमा स्त्रीपुरुषनां लक्षण कह्यां ॥ ॥ श्रीसामुद्रिकशास्त्र समाप्त. ॥ समाप्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KESKEKU 259તી ધામે ગુરૂ સટ્ટાનો સત નાશી. - છપાની પ્રસિ નાર :તમારા માલની અગર | પનીની જાહેરાત ઘેરઘેર પહોંચાડવા માટે મળેલ અગર લખા: નવનીતરાય અમૃતલાલ હાથમકર કીંમત એડવર ટાઈઝર માસ્તર ઠે-નવાપરા ભાવનગર. ધી માએ પ્રીન્ટીંગ પ્રેસ : : ખારગેઇટ-ભાવનગર. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 'WWW.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ઉપાસની બુવાને કે વિચાર (જુબ ) - ૭૮-કી. મેં ધર્મશાસ્ત્રો વાંચ્યા નથી, દાંત વગેરે ભ નથી કશું વાંચવાની જરૂરત પણ નથી. આ બધું આપોઆપ મિજાય છે. ઈ. સ. ૧૯૧૭ ની સાલમાં બીમામાં મને મહીનાની સજા થયેલ. શીડી ગામમાં મને ઉન્મત્ત દશા પ્રાપ્ત થઈ હતી. ગાંડા માણસની જેમ બેભાન જેવા બની જેમ તેમ ઘુમવું એનું નામ ઉન્મત્ત. દશા. પછી મને સ્ત્રી દશા સાંપડી એટલે સાકેરીમાં સાડીઓ, પિલકા, બંગડીઓ વગેરે પહેરવી શરૂ કરી. પછી તે બાદ મને એનાથી ઉંચ દશા સાંપડી તે વિષ્ટા ચુંથવી ફેંકવી ગટરમાં આળોટવું ભક્ષા મેળવવાના પાત્રમાં જ શચ કરવું અને એ નર્ક શરીરે ચોળવું. એ વખત હું નગ્ન રહેત. તે વખતે કેટલીક સ્ત્રીએ મને પ્રેમાંલીંગન આપતી, મામી નામની બાઈ તો નગ્ન થઈને નગ્નાવસ્થામાંજ મને આલીંગન આપતી. હું જે કહું છું તેજ ધર્મશાસ્ત્ર મારા ભક્તો માટે, બીજું ધર્મશાસ્ત્ર હાયજ નહિ વિષ્ટાની પુજા અને પાયખાનાની પુજા મારા ભકતો મારા પરના ભકિતભાવને લીધે જ કરતા. સ્ત્રીઓ એ ભેગ્ય વસ્તુ છે. છોકરીનું સમેપ કી વાણી એના માબાપને મોક્ષ મળે છે એમ મેં શત કરતું છે–ગોદાવરી, ચુંથવી અને એ ન માહીંગન આપ * ૧ જિ . :-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ભીમા, કમલા, રમા વગેરે પાંચ કન્યાઓ બ્રહ્મ લગ્નની રીત પ્રમાણે જ મને સમર્પણ થઈ છે. સોળમી વીસ વર્ષ સુધી એમની ઉમર છે, ગોદાવરી મારી મુખ્ય શીખ્યા છે. મેં એને મંત્રીપદેશ કર્યો છે, અને મારી પાછળ મારે અધીકાર હું એને જ સોંપવાને છું, (બ્રહ્મ સ્વરૂપ) કન્યા સાથે સહવાસ કરનારા તમામ પ્રશ્ન સ્વરૂપ બની જાય છે. બીજા પુરૂષો સાથે સંબંધ જોડવા છતાં એ બ્રહ્મસ્વરૂપીણી કન્યાજ કહેવાય. - હું જે બેલું તેજ ધર્મશાસ્ત્ર–લોકો મને દ્રવ્ય અર્પણ કરે તે હું લઉં છું. સાકરીમાં જમીન વગેરે સ્થાવર મીલકત મારી માલકીની છે. મકાનમાં આશરે લાખેક રૂપીયા ખરચ્યા છે. પહેલાં રોકડ પુષ્કળ હતી, નેશનલ બેંકમાં ૮૦૦૦૦ એંસી હજાર, છડીયા બેંકમાં ૫૦૦૦૦ પચાસહજાર, અકેલાની કેરટમાં ૩૦૦૦૦ ત્રીસ હજારની મીલક્ત માટે મેં દા માંડેલ છે. હું શીને વારંવાર કહું છું અને મારા પુસ્તકોમાં પણ લખાવેલ છે કે (ઉપાસની લીલામૃત પાનું ૫૯૨) દ્રવ્ય એ પાપ રૂપ છે. ગુ નર્ક નાખવા જેમ ઉકરડે હાય તેમજ આ ઉકરડા ઉપર નર્ક સમાન દ્રવ્ય ફે કે. લેકોના ઉદ્ધાર કરવા માટે એ પાપરૂપ દ્રવ્ય હું ગ્રહણ કરૂં છું, લોકો એ ખુશીથી આપે છે. કઈ કઈ વખત કેઈ સ્ત્રીઓના અંગ ઉપરથી નર્ક સમાન દાગીના હું જાતે ઉતારી લઉં છું. કેઈ બાઈ મને સોનાની બંગડીઓ પહેરાવી જાય છે, તે કે મંગળસુત્ર પણ પહેરાવે છે. હું એમને સદા સેભાગ્યવતી રહે, એમ ઓશીર્વાદ આપું છું. છોકરા કરતા છોકરીઓનું મહત્વ વધી જાય છે. તેથી જ હું Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat આવેલ છેતેવા વાકાના www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૩ છોકરીએનું સમર્પણુ સ્વીકારૂ' છું. ગાકુળ અષ્ટમીના દીવસે ગેાદાવરીને કૃષ્ણ બનાવવામાં આવે છે, તે વખતે હું હીંડાળા ઉપર બેસું છું, ગાદાવરી મારી પાસે બેસે છે. લેકા મારી અને ગેાદાવરી મન્નેની પુજા કરે છે. શીવરાત્રીને દહાડે ઉત્સવ થાય છે ત્યારે લે! મારે માથે અને મારી જનેન્દ્રિય ઉપર ફુલ ચઢાવે છે અને પુજા કરે છે. તમે જેને બીભત્સ ગણા છે તે મારે મન તેવું નથી. ગુદા દ્વાર સ્ત્રી પુરૂષાની જનેન્દ્રિય વગેરેમાં અશ્લીલ જેવું કઈ નથી મને તેા બધામાં પરમેશ્વર દેખાય છે, ઉપનીષદ ધર્મ શાસ્ત્રો કાંઇ પશુ મેં વાંચ્યા નથી, વેદાભ્યાસ પણ કરેલ નથી, મને જે પ્રેરણા થાય એજ મારૂ શાસ્ત્ર. મારા ભક્તાએ લખેલ મારા ચિત્રની ચેાપડીએ લેવા હું તમામને જણાવું છું.... અને અનન્તકેટી બ્રહ્માંડનાયક રાજાધીરાજ શ્રી સચ્ચીદાનંદ સદગુરૂ ચેાગીરાજ વગેરે કહે છે, તે ખરૂ છે. ' ઉપર પ્રમાણે એ પાખડીના ખુદના એકરાર છે. શ્રીજી હકીકતા પણ સંખ્યાબંધ છે. જેમાંથી ચેાડીક ટુંકાણમાં આપવામાં આવે છે. ઉપાસની બુવા ઘણા વખત નગ્ન રહે છે, તેા કેાઈ કાઇ વખત ગુણપાના કકડા કમરે વીંટાળે છે. ઘણા વેવલા ભકતા એને પ્રભુને અવતાર માને છે. આળકૃષ્ણની નાની મુર્તિ હાથમાં લઇને એ ખુઢા કુંવારી વીધવા વગેરે પાતાને અર્પણ કરાવે છે. છેકરીઓને સેના હીરાના દાગીના પહેરાવી પેાતાની પાસે મેસાડે છે. અણુ થયેલી સ્ત્રી ઉપરાંત ૨૫૪૫૦ સ્રીએના નાચ પણ ગાઠવે છે. ગોકુળાષ્ટમીના રાજ અને શીવરાત્રીના Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ દીવસે શીવ તરીકે પિતાની પુજા કરાવે છે. મુંબઈના એક ભક્ત એમને મેટર અર્પણ કરેલ છે. લાખો રૂપીયા એના પિતાને નામે બેંકમાં છે. પિતાની નન પુજા કરાવે છે. પોતે નગ્ન બની નગ્ન સ્ત્રીએના હાથે સ્નાન કરે છે. પિતાની જનેન્દ્રિયની પુજા કરાવે છે, કુલ ચડાવડાવે છે. પિતાના પિશાબને ગબ્દો પ્રસાદ સ્ત્રીઓને ચર્ણામૃત તરીકે આપે છે, વેવલા ભકતોને ફસાવવા ભકતોના નામે ઘણું એજન્ટે પણ એણે ગોઠવ્યા છે. મા–બાપને એ જણાવે છે કે, હું કૃષ્ણ છું, તમારી છોકરીઓ ગેપી રૂપે છે. હું તેમને અખંડ સ્વામી છું, માટે મને અર્પણ કરે. રાત્રે કુમારીકાઓ અને સ્ત્રીઓ એનું અંગ મર્દન કરે છે. | ધણી સાથે દર્શન કરવા આવતી જુવાન સ્ત્રીઓને બુવા કહેતા કે તારા વરને જવું હોય તો જવા દે અને તું અહીંજ રહે. તેના ધણને બેલાવી કહેતા કે તારા ઉપર આક્ત છે તારી બૈરી અહીં રહીને પુણ્ય કરશે તેજ એ આક્ત ઉતરશે નહિ તે એ વીધવા થઈ જશે. કેટલાં ભેળાઓ આવું સાંભળી સ્ત્રીઓ મુકી જતા. એવી રીતે ત્યાં રહેતી સ્ત્રીઓ ગર્ભવંતી થતી તે તેમના ધણીને ત્યાં બાબે મેકલી દેતે. એવી જ રીતે બાબાના આશ્રમમાં રહેતી એક સ્ત્રીને પુત્રપ્રાપ્તિી થઈ. બાબાએ કાગળ લખી સ્ત્રીના ધણને બેલા. ધણીએ આવીને કહ્યું છેકરૂં મારૂં હોયજ નહિ, બાબાએ કહ્યું એ તો ઈશ્વરી પ્રસાદીથી ઉત્પન્ન થએલ છે માટે લઈ જા. એક વૃદ્ધ સી બાબાની સેવા માટે જતી, તેને આબા કહેતા Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ તું મારી મા છે, તું સેવા ન કરીશ. એજ બાઈની પુત્રવધુની સેવાનો બાબાને વાંધો ન હતો. | બાબાની નગ્ન પુજા વખતે પુજામાં જવાને અધિકાર સ્ત્રીએનેજ હોય છે, પુરૂષને બાબા મના કરે છે, ઘણાએ ભક્તને બાબાએ વારંવાર કહ્યું છે કે છોકરીઓ અર્પણ કરવાથી કર કુળના ઉદ્ધાર થાય છે. કઈ કઈ વખતે ઉપાસની બુવાને એકદમ સ્ત્રીતત્વને ઉભરે આવી જાય છે, તે વખતે એ બાબા પિતાના તમામ પુરૂષ ભક્તોને ભેગા કરી તેમને સાડલા, કાચડીઓ, બંગડીઓ વગેરે અલંકાર પહેરાવે છે, પછી એ પુરૂષો સ્ત્રી વશમાં નાચે છે. બાબા છોકરીઓ સાથે બેસી એ નાચ જોતા રહે છે. દર્શન કરવા આવનાર નાની છોકરીઓને બાબા ઉપદેશ કરે છે કે છોકરીઓએ ભણવું નહિ. પરણવું પણ નહિ. પરણવાને કંઈ અર્થ જ નથી. સદપુરૂની સેવાજ એમણે કરવી. નગ્ન અવસ્થામાં નહાતી વખતે નવડાવનાર સ્ત્રીઓને બાબા પિતાના જ મુખે કહેતા કે હું જે નવસ્ત્રો છું તેવા તમે પણ નવસ્ત્રા થઈને જ નવડાવો. મામી નામની એક સ્ત્રી નગ્નાવસ્થામાં રહે છે, ફરે છે, બાબાની આરતી કરે છે, બાબાને આલીંગને આપે છે, બાબાની ધધુશંકા (પેશાબ) ચણોમૃત તરીકે વહેચે છે. ઉપરની હકીકત સીવાય એ ઉપાસની બાબાની ચિત્ર વિચિત્ર ઘણુજ હકીકત છે જેનું મોટું પુસ્તક ભરાય. આટલી ટૂંકી હકીકતો ઉપરથી જ જાણી શકાય છે કે બાબે એક મનુષ્યરૂપે નર-રાક્ષશ છે. આવા નર-રાક્ષસની હયાતીને લીધે જ આજે હીંદુ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ જાતી અગતીએ પહોંચી, ઠેર ઠેર ઠેર ખાઈ રહી છે અને હજીએ ધર્મઘેલી જનતા લાખ રૂપીઆ આવા નરાધમેને ચરણે મુકતીની આશાએ આપે જાય છે. ઉપાસની ખુવાને પારસી, ગુજરાતી એમાના ઘણુ શ્રદ્ધાળુ પણ માને છે. આ ઉપાસની ખુવાને સાથે વર્ષો સુધી રહેનાર એનો હીસાબ સાચવનાર એક ભાઈ જણાવે છે કે સન ૧૯૨૪ થી ૧૯૩૦ સુધી ડું બુવા સાથે હતો. રોજ રાત્રે ૯ વાગે મને બેલાવી આવેલા રૂપીઆનો ઢગલે બતાવી કહેતા, જે લેકે આ ગંદકી અહીં નાખી ગયા, મુંબઈની બેંકમાં મોકલીશું. પુષ્કળ દ્રવ્ય આવતું અને મોટર મારફતે મુંબઈમાં મેકલાવતા. ૧૯૨૪ થી ૧૯૯૦ સુધી મારી હાજરીમાં ૪૫૦૦૦૦ ચાર લાખ પચાસ હજાર રૂા. રોકડા ઉપરાંત દાગીના માળાઓ, મુગટે વગેરે દોઢ બે લાખની jજી વળી શાક ભાજી અનાજ વગેરેની આવક પણ પુષ્કળ હતી, એના ચમત્કારની છપાએલ હકીકત એનાજ કહેવાથી બધી લખાઈ અને છાપવામાં આવી છે. બધી મીત બાબાના નામ ઉપર અને ગોદાવરીના નામ ઉપર રાખવામાં આવી છે. બાબા ઘણા વખત સાફ કહેતા કે મારા વૈરાગ્યના દહાડા હવે ગયા, શા માટે દુઃખ વેઠું. પ્રભુકૃપાથી દ્રવ્ય અને સ્ત્રીઓ આવે છે તો હું તેને ઉપગ શા માટે ન કરૂં. કૃષ્ણ છું, હુંજ શીવાજી છું, બુદ્ધ છું, એરંગજેબ છું, અંગ્રેજી છું, શીવ છું, તમામ હું જ છું. એમ પણ ઘણી વખત બાબા કહે છે. આથી વધારે એ અધમ માટે લખવાનું શું હોય? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ હરી ગીત લાખે તણી મીલ્કત ધરાવે મેટમાં મહાલતા, ભકતો તણી ભામાં ફસાવી નગ્ન ના નાચતા. નગ્ન થઈને નાચનારા પુજા કરાવે શરીરની, કુલે મુકાવે જનેન્દ્રિય પર હદ હરે કુકર્મની. મર્દ મુછાળાં નચાવે બાયલાના વેશમાં, નીજ મુત્ર આપે સ્ત્રી પુરૂષને પ્રસાદરૂપ વિશેષમાં. શરીર જણાયે વૃદ્ધ પણ દીલ હજુ બુટું નથી, વીષયના કીડા તણું હંજુ વાસના છુટતી નથી. આવા કુકમી ગુરૂઓ થકી ઉદ્ધાર કયાંથી સંભવે, દુઃખે સબડતા હીંદુઓમાં ઘોર દુઃખે ઉભવે, રામકૃષ્ણના સંતાન હીંદુ કરોડો ભૂખે ટળવળી રહ્યા, બહુ અન્ન ને વસ્ત્રો હીણું બેકાર બની ભટકી રહ્યા. ધનવાન હે તે એવાં દુ:ખીના દુખડાને કાપજે, ભુમી ભારરૂપ આવા ગુરૂને પાઈ પણ ન આપજે. સમય બદલ્યા રંગ બદલ્યા જગૃત્ત થઈ સહુ જાતીઓ, ઘેર ઉંઘે હીન્દુ જાતી હસી રહી વીજાતીએ. એ ઉંઘને ત્યાગી દઈ હીન્દુ યુવા જાગજે, કહે “કેશરી” આવલંકરે મુકામાંથી ત્યાગ. * આ. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સટ્ટાને અંધાપે. કવિ:–મણિલાલ ત્રીવેદી ડાકેરવાલા. (રાગ–મેરે મેલા બાલાલે ) સટા ખુબ કરી શીદ અંધ અને, છતી આંખ છતાં શીદ અંધ બનેલ ધંધા તણા ખંધા બની, હરામીઓ દેખાય છે, હરામનું ઘન શોધવા, હાથે કરી હણાય છે. છક્કા પંજા કરી શીદ અંધ બને–ટા ૨ ભુખે મરે ઘર બાલુડા, દુઃખે બહુ પીડાય છે. બે હાલ ચીથરે થાય તોએ, સટ એ રમવા જાય છે. આવા કૃત્ય કરી શીદ અંધ બને– શટા. ૩ ઘુમ્યા કરે રજની બધી, જેતા દીસે એ આખલા, એવા રખડતા બહુ દીઠા, કેટલાક આ| દાખલા. ભાન ભુલી પિતાનું શું અંધ બને–સટા. ૪ ઘરમાં બિચારી બાયડી, તમ નામનું રોયા કરે, દુખે તમારા પાપથી, ના પેટ તે પુરૂ ભરે. લાજ મુકી તમે શીદ અંધ બને–સટા. ૫ માણસપણું જે હોય તો ભુંડી દશામાં ના ભમે. તે છતાં નફટ બની, સટા મહી દેડો તમે. છતી આંખો છતાં શીદ અંધ બને–સટા. ૬ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ રજની મહીં બે વાગતાં તારની ચિન્તા કરે, ત્યાં સુધી હોટલ મહીં ગપાં તમે માયા કરો. પછી પેટ ફુલાવી શું ફાલ્યા કરો–સટા. ૭ પજે હતો જે ધારેલો ચોક્કસ પંજે તે કુટે, પંજો ઉડી છક્કો થયો, પથ્થર લઈ માથું કરે, રાંડ રડવા બેસે તેમ રડ્યા કરે–સટા. ૮ ચીસો ભયંકર કારમી, ખરનાદ સમ તે થાય છે, ખાધા, લીધા, આખ્યા તણી, બુમો પછી પડાય છે. પોલીસ દેખી પછી તો શું દેડયા કરે સટા. ૯ પોલીસ પાસે આવતાં, શેાધેજ ગલીઓ પાક્લી, દોડે ભાગે બીકથી છૂટે પછીથી કાછી. ઈજજત વેચી અને શીદ ઉલ્લુ બને–શટા. ૧૦ થાય ફજેતી પ્રરમી છોકરાજ પાડે તાળીઓ, પોલીસ પકડે પલકમાં થાયે પછીથી હળીયે, ખાનદાની વેચીને શું અંધ બને–સટો. ૧૧ કાઠીયાવાડ મારૂં બેઠણું, ભાવેણું મારું ગામ જાતના અમે વણીક છીએ, નવનિતરાય મારું નામ ભાષણ કરી હેડીલ વેચું છું, જાહેરખબરનું કામ; એડવર ટાઈજર કીંગ કહે, હોથબર છે ઉપનામ. કડકાઈ પિચી એટલી, ન પાસ દેવીયું દામ; હાથબકર કડક થઈ ફરે, બસ મુખ્યઅ આમ છે. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I - - - - તૈયાર છે ! ! તૈયાર છે !! ત્રાપજને હું મીઠો માવો. . રાજા મહારાજાઓમાં તેમજ અમલદાર વર્ગમાં પ્રખ્યાતી પામેલે “ત્રાપજને મીઠે ! મા” અમારે ત્યાંથી કઈ પણ વખતે છુટેક ત્યા જથાબંધ તૈયાર મળી શકશે. | શુભ પ્રસંગે તેમજ મેળાવડા-મિજલસમાં ખાસ અગાઉથી ઓર્ડર આપવાથી માલ પુરે / પાડવામાં આવશે. એકવખત પધારી ખાત્રી કરે... | તા. ક:-હારના ઓર્ડર ઉપર પુરતું ધ્યાન અપાશે. મળવાનું ઠેકાણું – ગાંધી રમણીકલાલ પ્રેમચંદઘીવાળા, ઠેઘોઘા ગેઈટ–ભાવનગર.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [T ]][ni in 10 (Trinidr ] Irrincip[pir 07 નાની છબી ઉપરથી માટી છબી બનાવનાર સાઇન- થી બાર્ડ ડીઝાઇના, ગ્લાસ તો, ' ' -ટીંગ તથા દરેક જાતનું * ત્રેિ કામ કરનાર 1 ટર જે. એમ. માલી (0) ખર ગેઇટ ભાવનગર જીજ070 0 0 0 ના "[region is get rid તા. TESTITUTEREST | મહેતા કોકભાઇનસ તરાયએન્ડ બ્રધર્સ કે ખાર- ભાવનગર. અમારે ત્યાંથી દરેક જાતના આઇ. એસાલા આખા ત્યા ખાંડેલે થી એાદીખાનું સ્થા કઢાવી, કરીયાણુ વીગેરે છુટક સ્થા જેથાબંધ કીયિત ભાવથી મળશો. એક વખત પધારી ખાત્રી કરે. ઉERE TRUSTEESELESSFURTHEREFERENTS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat, www.umaragyanbhandar.com