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सा पढ़ी लगते सुखं ॥ ९८ ॥ यस्याः पयोधरे वामे । मितं तिलकं नवे ॥ कर्णे कं ठे सुपुत्राया । सा कन्या सुखदायिनी ॥ ए॥ ग्रीवया संक्या चंडी | दरिद्रा हस्वया तथा ॥ कुलस्य नाशिनी नारी । दीर्घया जायते पुनः ॥ ६० ॥ यस्या ग्रीवा सुवृत्ता स्या – खात्र यसमन्विता ॥ दक्षिणावर्तसंकाशा । सा भा थाय वे. ॥ ५८ ॥ जे स्त्रीनां मात्रां स्तन का न पने कंठपर तिलक होय ते सारा पुत्रवाळी पने सुख देनाएं) थाय वे ॥ एए ॥ लांबी डोकवाळी खीजण, टुंकी मोकवाळी द रिड), ने दर्घ डोम्वाळी कुळनो नाश क नारी थाय े ॥ ६० ॥ जे स्त्रीनी मोक गोक, त्रण रेखायी सहित, छपने दक्षिणावर्ति दोय ते अधिक नाग्यवाळी थाय छे. ॥ ६१ ॥
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