Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 64
________________ ( ६१ ) वृंदा कामचारिणी ॥ १२ ॥ इति नारीनेत्रलक्षणं ॥ द्वितीया चंद्रमंकाश - युगा सम नाशिका | ऋजंगुलिः प्रीतिकरा । पत्युः संपत्करी सदा || १३ || य मुखवणं - पू. र्णिमाचंद्रमंकाशं । सुपुष्टपरिमंडलं ॥ यस्या मुं खं सुदीपं च । मा च लक्शीरिवापरा ॥ १४ ॥ चारणी थर थकी पोताना पतिना घरमां रहेनी नथी । २ ॥ एवने स्रीनां प्रांखनां लक्षण कह्यां वे ॥ जे स्त्रीनी बन्ने नमरो बीजना चंद्रजेव]. नाक सोधुं छपने आंगलीन कोमल दोय ते पतिने सुख करनारी तथा धननी वृद्धि करनाएं। थाय वे ॥ १३ ॥ दवे मुखनां लक्षण कहे बे-जे स्रनुं मुख पूर्णिमाना चंद्र जेवुं, पुष्ट, गोळ, छाने होय ते स्त्री धनाने संततिवाळी • तेजखी थाप ठें, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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