Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(६०) ॥६५॥ इति नाशिकावदाएं ॥ पिंगनेत्रों भवेन्नारी । ह्यप्रिया स्वप्रियस्य च ॥ दुःशीला सा च विज्ञेया । वैधव्यं लगते खलु ।।७०॥ नयने में करे यस्या । दशने चातिवंचने ॥ कुटिला सा च विख्याना । नारीलक्षणवेदि तिः ॥ ११ ॥ यस्याःतु हममानाया । गन्न भ. वति कूपका ॥ न मा भतुगृहे तिष्टेत । स्व. करनारी थाय . ।। ६० ॥ एवीगत नामित कानां लक्षण कह्यां . । पाळी थांखवाट) स्त्री पोनात पनिने अप्रिय व्यनिचारणी. त था विश्वा थाय . ॥ १० ॥ जे स्त्रोनी यां. ख केंकर, अने जोवामां अतिचंचल होय ते कुटिल होय , एम स्त्रीलक्षणना जाणकारो कहे . ।। ७१ ॥ जे स्त्रीनां हसतां थकां गा. समां खाडो पडे ते स्त्री स्वबंदी थने व्यभि
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