Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 66
________________ ( ६३ ) लवाटे श्वशुरं र्हति । उदरे देवरं तथा । मे र्तारं च भगे हन्या - तां कन्यां परिवर्जयेत ॥ ॥ १८ ॥ युग्मं ॥ पथ केशलक्ष्णं - स्थूल केशा पतिनी स्या - दीर्घकेशा धनप्रदा ॥ परुयैः कपिलैः क्रूरा | स्निग्धकेशा च शोभना ॥ ७५ ॥ - थ स्वरवदाएं – पिकहंमस्वरा रम्या । या नाJ. 11 93 || Aia SG1:318) ageà, aiबा पेटवाळी दीर, अन लांबी योनिवाडी पाताना जनरने मारे वे, एनी कन्याने बोमी देव ॥ 9 ॥ ढवे केशनां लक्षण कहे वे - जामा केशवाळी पतिने मारनारी, लांबा केशवाळी धन देनार), खडववना ने पीळा केशवाळी कर, ाने नि केशवाळी शोजिती दोय वे. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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