Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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( ५) विद्यते यासां । ज्ञेयास्ता ह्यशुभाः खलु ॥१॥ अल्पस्वेदा चाटपरोमा । निद्रानोजनार्वता ।। गात्रेषु न च रोमाणि । नारीणां लदाणं शुज ॥ ३ ॥ रक्तजिह्वा मृगादी च । या नारी मृगलोचना ॥ कृशोदरी गजगतिः । स्त्रीणां लदाणमुत्तमं ।। ४।परानुकूतां परपाकपाकि नीं। विवादशीला स्वयमर्थचारिणी ॥ अाक्रमो परसेवो थोडा रोम थोडी निषा बने स्वल्य जोजन होय तथा जेणीना अवयवो रो. मरहित होय ते सागं लदानी स्त्री जाण: वी. ॥ १-३ ॥ लाल जीन्न, मृाजेवां नयन, कृष नदर बने हस्तिनीजेवी चाल ए सपळां स्त्रीननां नत्तम लदाणो कह्यां ॥४॥बी. जाने अनुकूळ, बीजानी रसोश करनारी, क लह करनारी, पोतेज धननो व्यय करनारी,
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