Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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( 9 ) ये नाधिका भवे ॥ ६१ ॥ रक्तजिह्वा तु या नारी । सासुखदायिनी ॥ नित्यं वर्धयते पुत्रैः । सुकुमारा तु मोहिनी ॥ ६२ ॥ श्वेतायां संहरेद्वंधून् । मखिनायां धनदायं ॥ श्यामायां कलढो नित्यं । वंशवेदं विनिर्दिशेत् ॥ ॥ ६३ ॥ श्वेतेन तालुना दामी । दुःखिना क्रूनाबुना ॥ पनिजक्ता प्रिया पत्यू | रक्तनाजे त्रांनी जीभ रानी होय ते स्त्री सुकोमल, सुंदर सुख देनाएं छपने पुत्रवती थाप ते. ॥ ॥ ६२ ॥ श्वेन जीभवाळी पोताना पाइने संघरे, मलिन जोगवा धननो प करे, अने काळी जीभवाळी हमेशां कलह करे, था वंशनो नाश करे. ॥ ६३ ॥ श्वेताळवांवाळी दामी, श्याम ताळबाळी दुःखो ने खाल ताळयांवाळी पतिव्रता तथा सुशोभित
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