Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
View full book text
________________
(४२) । स्थूलैः केशैश्च तस्करः ॥ दुःखितः पुरुषो ज्ञेयः । झुधा च परिपीमितः ॥ १५॥ विरला मधुराः केशाः । स्निग्धा भ्रमरसन्निभाः ॥ म. धुवर्णाश्च यत्केशा-स्ते सर्वे कमलाप्रियाः॥ ॥२०॥ इति सामुद्रिके नरखदणानि ॥
-
ललाटनां लक्षण कह्यां . ॥ जेना केश वां. का फुटेला बुखा अने जाडा होय ते माणम चोर सुःखी ने कुधाथी पीमायेलो रहे . ॥ १५॥ जेना वाळ बूटा मधुर चीकणा य. ने थलि तथा मधुजेवा वर्णवान होय ते स. घला धनवान थाय . ॥२०॥ एवीरीते सा. मुद्रिकशास्त्रमा पुरुषनां सदाणो समाप्त थयां.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106