Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ (४०) ति कर्णलदणं ॥ ललाटेनार्धचंडेण । संनवेत्पृथिवीपतिः।। विपुलेन ललाटेन । विद्याव्यश्च भवेन्नरः॥१॥ घटपेनाथ ललाटेन । स्वस्पायुर्जायते नरः ॥ जनतेन ललाटेन । धनलानः प्रजायते॥ ॥ १३ ॥ विषमेण ललाटेन पुखिनो जर्जरा नराः ॥ परकर्मरता नित्यं । प्राप्यंते वधबंधनं थाय . ॥११॥ एवीरीते काननां लक्षण . अर्धचंद्रजेवा कपाळ्वाळो पृथ्वीपति, थने विशाळ ललाटवाळो विहान होय . ॥१॥ टुंका कपाळवाळो खल्पायुषी, घने जंचा क. पाळवाळो धननो लान मेळवनारो थाय ने. ॥ १३ ॥ वांका कपाळवाळा दुःखी, जर्जरित, परसेवक, घने बंधनवाळा थाय . ॥ १४ ॥ जेना कपाळमां त्रिशूळ अथवा भाडं देखाय 7 .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106