Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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( ५० ) शं । गृह्यं गूढमतिस्थितं ॥ यस्याः सा सुन गा धन्या पुण्यवखाप्यते ॥ ४१ ॥ व्या तः सुभगो यस्या । भगस्योपरिमस्तके ॥ त स्याः प्रजायते पुत्रो । धनवान्यसमन्वितः ॥ ॥ ४५ ॥ कूर्मपृष्ट गजपृष्टा । समकोमल रोमि ही । विवर्णा पद्मपत्रा च । पडेते सुनगा भ गाः || ४३ || खरोरुाररोमा च । शुष्का दीपानजेवा व्याकारी हाय ते स्त्री जी पूज्य तथा पुण्यवानोनेज लन्य होय वे. ४१ | जेनी योनिना उपल्ला जानवर शुभ गोनकार होय ते धन धान्नयी उरपूर पुत्रने ज न्म व्यापारी थाय वे ॥ ४२ ॥ काचवानी पीठजेवी १, हाथीनी पीठजेवी २, सीधी ३, कोमळ रोमवाळी ४, विवर्ण ए, छाने पद्मनां पत्रमरखी ६, ए व जातनी योनि सारी कहे
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