Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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( ४१ ) ॥ १४ ॥ त्रिशूलं कुलिशं चापि । ललाटे य स्य दृश्यते ॥ ईश्वरं तं विजानीयात् । प्रमदाजनवल्लनं ॥ १५ ॥ पंचरेखः शतायुः स्यादशीतिश्चतुर्जिता । जवंति त्रीणि षष्टिः स्याद् | हान्यां च विंशतिद्वयं ।। १६ ।। रेखजेन ललाटेन । विंशतिः परिकीर्तिता ॥ यरेखक ललाटेन | स्वल्पायुर्जायते नरः || १८ || इति ललाटणं || कुटलैः स्फुटितै रुदौः ते धनवान ने स्त्रीजने प्रिय थाय बे. ॥ ॥ १५ ॥ जेना कपाळमां पांच रेखा दोय ते शतायुषी, चार रेखा होय ते एंशी वर्षनो, णं रेखावाळी साठ वर्ष नो, बे रेखावालों, चाः लीस वर्षनो छाने एक रेखावाळो वीश वर्ष नो
त्रः
थाय बे, छाने रेखारदित कपाळवाळो माणस स्वल्पायुषी थाय वे. ॥ ९६-९८ ॥ एवीरीते
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