Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 41
________________ (३७) पीतवर्णाश्च ये नगः ॥ पीतनाशा नराश्चापि। सर्वे ते जनवल्लभाः ॥ ६ ॥ स्थूलनाशा नरा ये च । निर्धाम्ने नवंत हि ॥ वक्रनाशास्तथा चापि । सामुद्रश्चन यथा ॥७॥ येषां वक्रा च दीना च । नाशिका मुखमध्यगा । ते सर्व दुःखिनो ज्ञेया। धनगीलविवर्जिताः ॥ ॥ इति नाशिकानदाण ॥ रक्तादा ध. पीळा वर्णवाला श्रन पळी नामकागाला सने प्रिय थाय ने. ॥ ६ ॥ जाडी थने वां की नासिकागला निधन थाय ने, एम सा. मुद्रनुं वचन ॥9॥ जननी नासिका वां. की अने दीननावरात्री होय ते दुःखतथा. धन अने श्राचाररहित जाणवा. ॥ ॥ ए. वीरीते नासिकानां लक्षण कह्यां . ॥ राती लांखवाला धनवान, वाघजेवी यांखवाला खी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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