Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(३७) रपार्थिवः ॥ भृगस्वरा नरा नित्यं । जोगवंतो, नरेश्वराः ॥ ३ ॥ क्रौंचस्वरा नरा ये च । ना. ग्यो नाति ते ॥ खरकार वरा ये च । नि: र्धनाः पापकारिणः ॥ ४ ॥ इति स्वरलकणं। पार्थिवाः शुकनाशाः स्यु-दोघनाशाश्व भोः गिनः ॥ इस्वनाशा नरा ये च । धर्मशीलांश्च तान विदुः ॥ ५॥ हस्तिनाशा नरा ये च । स्वरवाला मनुष्यो हमेशां वैनवी राजा थाय.. ॥ ३॥ क्रौंजेवा स्वरवाला जाग्यवान थाय बे, घने जे खर तथा कागमाजेवा स्वस्वाला होय रे ते निर्धन अने पापी थाय . ॥४॥ एवीरीते वरनां बदण कह्यां . ॥ पोपटजेवी नासिकावाला राजा, लांबी नासिकाबाटा नोगी, घने टुंकी नासिकावाला धर्मिष्ट जा. एवा. ॥५॥ वली हाथीजेवी नासिकावाला,
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