Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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( ३५ ) श्यामलायां तु जिह्वायां ! संभवेत्पापकारकः || 9 || स्थूलजिह्वान्तं क्रम-स्ते नरो नृषिः । श्वेतजिह्वा नरा ये तु । शौचाचारविवर्जिताः ॥ ८ ॥ पद्मपत्राभजिह्वस्तु | जोगवान् मिष्टनोज पः ॥ रक्तजिह्वा वेद्यस्तु । विद्यालकीं मनुवन्॥९॥ - ति जिह्वालक्षणं ॥ कृष्णाग्ये ते । जंपापी थाय वे. ॥ १ ॥ जामी जी जवान क्रूर छाने यसत्य बोलनाग ढोय वे, पने घोळी जीजवाळा परिवाचार विनाना होय वे, ॥ ५८ ॥ कमलनां पानजेव। जीनवाळो भोमी तथा मिष्टान्न खानारो थाय वे अने खाल जी गवाळो विद्या ने लामो मेलवे वेः ॥ ९ ॥ एवीरीते जीननां लक्षण कह्यां वे. जे मनुष्यो काळं ताळवांवाळा दोय ते कुल.
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