Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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२४) वानरदंताश्च : गिय क्षुधा तृषार्दिताः ॥४॥ हस्तिदंना महाद। । हयदंता गुणान्विताः ।। कराल रुदादाने-नंग हि दुखजीविनः ॥ ॥ए५ ॥ द्वात्रिंशद्दशनै राजा । एकत्रिंशश्च जोगगन ।। त्रिद्विदशनैश्चात्र । नरा हि दुः. खर्जीविनः । (ए ॥ इति दंतलदणं ॥ कृ. 5णा जिह्वा भवेद्यस्य । स नरो उखपाधनः मेशां चरन ग्रने सम्पयी पीडाय ने ॥४॥ हायी अने अश्वजेबा मोटा दांतवाळा गुणी, घने भयंकर तथा बुखा दांतवाळा दुःखी हो. य ॥ ॥५॥ ३१ दांतवाळो राजा, ३१ दां. तवाळो जोगीने ३० दांतवाळा मनुष्यो दु:खी होय . ॥ ६ ॥ एवीरीते दांतनां ल. क्षण कां ॥ जेनी जीभ यतिकाळी हो. य ते दुःखी, अने काळाश पमती जीभवाळो
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