Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(३२) उबिंबोपमं वक्र । धर्मशीलं सदा भवेत्॥ मृ. गमूषकवाश्च। ते नग भाग्यवर्जिताः ॥ए|| करालवक्रा पाश्च । धनहीनाः प्रकीर्तिताः ।। हयवक्रा नरा ये च । दुःखदारिद्यरोगिणः । ॥ए०॥ इति मुखलदाणं ॥ यस्य गलौ हि संपूर्णी । पद्मपत्रसमप्रगौ ॥ भोगवान स नः रश्चैव । मर्वविद्याधरः स्मृतः ॥ १॥ सिंहः होठं चंद्रनां बिंबसमान होय ते धर्मिष्ट, अने हरिण अथवा उंदरजेवा महोडांवाळा मनुष्यो दुर्भागी होय . | 0 || भयंकर मुखवाळा धनरहित गजा थाय . घने घोडाजेवा मु. खवाळा मनुष्यो पुःखी दरिद्री बने रोगिष्ट थाय . ॥ ५० ॥ एवीरीते मुखना लक्षण कहां.॥ जेना बन्ने गालो नरेला तथा कमळना पानजेवा वर्णवान होय में ते मनुष्य
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