Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 33
________________ (३०) सामुद्रवचनं यथा ॥७३ ।। सुखिनं सुजगं चा पि। सा च प्राप्ता कनिष्टिकां ।। सर्वदा च करोत्येव । यद्यबिन्ना शुकरा !! GH | कनिष्टा. मुलरेखाया । यावत्योऽवश्व रेखकाः ॥ तावं. यो महिलास्तस्य । पुरुषस्य विनिश्चिताः ॥ ॥ ५ ॥ ति सामुद्रिके रेखालक्षणं ॥ __ ग्रीवा च वतुला यस्य । पूर्णकुंजसमा भसुखवाो थाय ने, एवु मामुद्रनुं वचन . ।। .॥ ३ ॥ ते जो अविचिन्न टचली प्रांगळी. सुधी जती होय तो त शुन करनारी सुखी तथा नाग्यवान करनारी थाय . IIGU॥ ट. चली बांगळीनी नीचेनी मुळ रेखानी वचमां जेटली नानी रेखान होय रे तेटली स्त्रीन ते पुरुषने थाय . ॥५॥ एवीरीते सामु. दिकने विषे रेखानां लदण कह्यां .॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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