Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 39
________________ ( ३६ ) वंति कुलनाशकाः ॥ पद्मपत्रसमं ताबु । स नरो नृपतिर्भवेत् ।। १०० ।। श्वेतताबुन ये च । धनवंतो भवति ते ॥ रक्ततालुतरा ये तु | घननाजो जवंति ते ॥ १ ॥ पीतताबुनरा ये च । भवंति ते नराधिपाः ॥ जोगिनस्ते भवेयुश्च । सामुद्रवचनं यथा ॥ २॥ इति ता सुलक्षणं ॥ हंसस्वरो नरो धन्यो । मेघगंजीनो नाश करे वे, छाने कमळनां पत्र सरखां तालवांवाळो राजा थाय ते ॥ १०० ॥ श्वेत ताळवांवाळा धनवान ने खाल ताळ्वांवाळो पण धनवान थाय बे. ॥ १ ॥ पीळां ताळवांवाळा राजा व्यथवा जोगी थाय बे, एम सामुद्रनुं वचन बे ॥ २ ॥ एवीरीते ताळुनां खदा ण कां बे. ॥ इंसजेवा स्वरवाळो पूज्य, मेघजेवा गंभीर स्वरवाळो राजा ने भ्रमरजेवा • Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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