Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(२४) येषां । घनस्निग्धौ फ्योधरौ ॥ स नरो मैथुने शूरो । नोगवांश्च तथा नवेत् ॥ ६६ ॥ उन्न. तौ नैव स्निग्धौ च । शिथिलौ च पयोधरौ।। निर्मासौ च कुरूपौ च । ते नरा दुःखना जि. नः ॥ ६७ ॥ विस्तीर्ण हृदयं यस्य । मांसलो पचितं समं ॥ शतायुस्तं विजानीया-द्रहुनाग्यं महाधनं ।। ६७ ॥ इति हृदयलदणं ॥ मांसल जामां अने मृदु स्तन होय ते मैथुः नमा शूरो तथा जोगी थाय . ॥ ६६ ॥ जे. ना स्तन नीचां, चिकाश विनानां पोचां मांसरहित बने कुबमां होय ते दुःखी थाय जे. ॥ ६७ ॥ जेनुं हृदय विशाल मांसल पुष्ट य. ने.सी, होय ते बहु नाग्यवान महाधनवान धने शतायुषी थाय जे. पण एवीरीते हृदयनां. सदण कह्यां . सिंहजेवी पीठवाळो धननो
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