Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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( १५ ) सिंहपृष्टो नरो यस्तु | धननोगी विनिर्दिशेत् ॥ कूर्मपृष्टो भवेद्राजा | घनसौभाग्यवान् ॥ ६५ ॥ इति पृष्टलक्षणं ॥ प्रलंब बाहुर्विज्ञे यो | नरः सर्वगुणान्वितः ॥ हस्वबाहुवे - हासो | परकर्मकरः स्मृतः ॥ ७० ॥ इति वाहुलक्षणं ॥ यस्य मीनसमा रेखा । कर्मसि - हिः प्रजायते ॥ धनाढ्यस्तु स विज्ञेयो । ब. जोगी ने काचवा जेवी पीठवाळो धन सौजाग्याने वैभवथी नरपूर राजा थाय बे. ॥ ६५ ॥ एवीरीते पीठनां लक्षण कह्यां बे. लांबा हस्तवाळो माणस सर्व गुणवाळो होय बे, टुंका हाथवाळो बीजानुं काम करनार दास बने बे ॥ १० ॥ एवीरीते बाहुनां लक्षण कह्यांबे ॥ जेना इस्तमां मत्स्यजेवी रेखा दो - य वे कार्यसाधक धनाढ्य छाने बहु परिवार
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