Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 26
________________ (२३) धन्यो । मयूरोदरसन्निभः ॥ मंरकसदृशश्चैव । स भवेत्पार्थिवो नरः ॥ ६३ ॥ व्यघोदरो गज. पतिः । शृगालोदरमध्यमः ॥ नरः सिंहोदरो यस्तु । धनधान्यसमृधिनाक् ॥ ६४ ॥ वर्तुः ला चातिगंनीरा । नानिः पुंसां प्रशस्यते ॥ नत्तान विरला नाभिः । सदा दुःखप्रदायिनी॥ ॥ ६५ ॥ इति नानिलदणं ॥ जनतोपचितौ देमकांजेवा नदरवाळो मनुष्य पूज्य तथा रा. जा थाय . ॥३३॥ व्याघवा पेटवाळो गज पति, शियाळजेवा पेटवाळो मध्यम, बने सिंह जेवा पेटवाळो धनधान्य घने वैनववाळो थाय ३. ॥ ६४ ॥ गोळ अने अतिगंनीर नानि वखणाय , तुंची अने वांकी नाभि हमेशां दुःख देनारी थाय जे. ॥६५ ।। एवीरीते ना. निनां लक्षण कयां . ॥ जे मनुष्यने जंचां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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