Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 16
________________ (१३) लाः कुनखा ज्ञेयाः । कामनोगविवर्जिताः ॥ ॥ ३४ ॥ विक्रांतैः स्फुटितै रूदै-नखैर्दारित द्यनाजिनः ॥ महापापानि कुर्वति । पुरुषा ह. रितैर्न खैः ॥ ३५ ॥ इंगोपकसंकाशै-नखैनवति पार्थिवः ॥ तानश्वर्यः । कुजैनखैश्च पातकी ॥ ३६ ।। वर्तुलेश्व तयैश्वर्य खी होय , घने खराब नखवाळा मागसो लंपट अने रतिसुख विनाना थाय . ॥३॥ खम्बचमा फूटेखा थने बुखा नखवाळा माणसो दरिडी थाय , तेमज लीला नख. वाळा माणसो महा पाप करे . ॥ ३५ ॥ गोकळगायजेवा नखवाो राजा, ताम्रजेवा नखवाळो बहु बळवान धने कुबडा नखवाळो पापी थाय . ॥ ३६ ॥ वळी गोळ नखथी ऐश्वर्य, जाडा नखथी सुख, तथा स्निग्ध नख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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