Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 17
________________ (१४) । पुष्टितैः सुखिनो भवेत् ॥ स्निग्धैरुपचित. स्ताने-नरो नवति नृपतिः ॥ ३७ ॥ इति सामुद्रिके नखलदणं ॥ धनिनस्तुरगजंघा । राजानो मृगजधिकाः ॥ दीर्घायुः स्थूलजंघश्च । जायते ध्यानमानसः ॥ ३० ॥सिंहव्याघसमा जंघा । धनकीर्तिप्रदायिनी ॥ रोमयुक्ता च जंघा तु । दारिय खबु यति ॥ ३ए । शृ. घने भरावदार नखथी मनुष्य राजा थाय . ॥ ३७ ॥ एवीरीते सामुद्रिकशास्त्रमा नखोनां लक्षणो कह्यां . ॥ घोडाजेवा साथळवाळा धनवान , हरिणजेवा साथळवाळा राजा, घ. ने जामा साथळ्वाळा दीर्घायुषी तथा ध्यानी थाय . ॥ ३० ॥ सिंह घने व्याघजेवा साथळ धन धने कीर्ति देनारा थाय बे, घने रोमवान साथळ गरीबा थापे ।३।शृ. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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