Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(१७) नोऽसौ । दुःखशोकनयंकरः ॥ ४५ ॥ श्वानोष्ट्रमहिषाणां च । खरसूकरयोस्तया ॥ गतिर्येषां समाख्याता । ते नरा जाग्यवर्जिताः ॥ ४६ ॥ इति गतिलदणं । दक्षिणावर्तलिं. गेन । नरो हि पुत्रवान नवेत ॥ वामावर्तेन लिंगस्य । नरः कन्याजरप्रदः ॥ ४ ॥ स्थू. लकृष्णेन लिंगेन । दुःखवान हि नवेन्नरः ॥ था दुःखी बने शोकसहित थाय ॥४५॥ जे मनुष्यो कुतरा जंट पामा खर घने सूवर जेवी चालवाळा मनुष्यो भाग्यविनाना होय
॥ ४६ ।। एवीरीते गतिनी लक्षण कह्यांडे ॥ दक्षिणावर्तलिंगवालो होय ते बहु पुत्रवाळो, अने वामावर्तलिंगवालो बहुकन्यावालो थाय ३. ॥ 9 ॥ जामा बने श्याम लिंगवाने मनुष्य दुःखी थाय ने, अने भ्रमरवान तथा वां.
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