Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ ( १७ ) रागंधेन पार्थिवः ।। २१ ।। लाक्षागंधे नवेत् स्तेनो । मांसगंधेन तस्करः ॥ व्यसनी रक्तगंधे च । मद्यगंधेन दुःखितः ॥ ५२ ॥ कटुगंधेन शुक्रेण । पुरुषो पुर्नगो जवेत् ॥ दा रगंधेन शुक्रेण । नरा दारिद्र्यनाजिनः || १३|| पयोवर्णेन शुक्रेण । नरो जवति पार्थिवः ॥ श्यामवर्णेन शुक्रेण । देहभोगी भवेन्नरः || र्यवाळो राजा, तथा मदिरागंधी वीर्यवाळो पण राजा थाय बे ॥ ५१ || लाख ने मांसस - रखी गंधवाळा वीर्यवाळो चोर, रुधिरगंधी वी र्यवाळो व्यसनी, छाने मद्यगंधी वीर्यवाळो दुः खी थाय बे. ॥ ५२ ॥ कटुगंधी वीर्यवाळो दुजोगी, ने दारगंधी वीर्यवाळा पुरुषो दरिद्री श्राय बे ॥ ९३ ॥ दुधजेवा वर्णवाळा वीर्यवाको मनुष्य राजा, अने श्यामवर्णी वीर्यवाळो · • Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ·

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106