Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(१७) यलिभिर्वक्रलिंगैश्च । पुरुषाः सुख गोगिनः ।। ॥ ४ ॥ एकैकधारलिंगेन । नरो जवति पा. र्थिवः ॥ द्विधारे धनवांश्चैव । बहुधारा दरिद्रता ॥ ४५ ॥ मीनगंधेन शुक्रेण । धनपुत्रयुतो नवेत ॥ हविर्गधेन शुक्रेण । गर्वाब्यो जाय. ते नरः ॥ ५० ॥ मधुगंधेन शुक्रेण । नराः स्त्रीजनवल्लभाः ॥ पद्मगंधे नवेद् नृपः । मु. का लिंगवाळा पुरुषो सुखी थाय . ॥ ४॥ एक धारवान लिंगवाळो मनुष्य राजा, बेघा रवाळा लिंगवाळो धनवान्, अने बहु धारवा ला लिंगवाळो दरिद्र होय . ॥ ४ए॥ मा. बलां जेवी गंधवाळा वीर्यवाळो धन धने पु. बवाळो, अने हविषनी गंधवान वीर्यवाळो म. नुष्य अभिमानी थाय ॥५०॥ मधुगंधी वीयेवाळा पुरुषो स्त्रीने प्रिय, कमलगंधीवा
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