Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
View full book text
________________
(१६) सामुळे जंघालादणं ॥
एकरोमो भवेडाजा । दिरोमो धनवान नवेत ॥ विरोमो पंमितो ज्ञेयो । बहुरोमे द. रिद्रता ।। ४३ ॥ हंसहस्तिसमा गत्या । पुरुषाश्व नराधिपाः ॥ वृषचाषशुकानां च । गति! गवतां नवेत् ।। ४४ ॥ नूनं दिशति स्त्रीलो ट्यं । काकोबुकसमा गतिः ।। द्रव्यबुधिविही. मां जंघानां सदण कह्यां .
एक रोमवाळो राजा, बे रोमवाळोधन वान, त्रण रोमवाळो पंडित, घणारोमवाळो ग. रीब होय . ॥ ४३ ॥ हंस अने हाथीजेवीं चालथी मनुष्य राजा थाय बे, बळद चापथ ने पोपटनी चाल वैभव थापनारी याय . ॥४॥ कागमा भने घुवडजेवी चालथी मनुष्य स्त्रीलंपट द्रव्यहीन तथा बुधिरहित, त
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106