Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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(१५) गालसमजंघा च । लक्ष्मीस्तेषां न जायते ॥ मीनजंघः स्वयं लदमी । संपामोति न संशयः ॥ ४० ॥ स्थूलजंघाश्च सूक्ष्माश्च । श्रियं जुजंति मानवाः ॥ ऊष्ट्रजंघा ना ये च । नित्यं नोगविवर्जिताः ।। ४१ ॥ काकजंघा नरा ये च । तेषां राज्यं विनिर्दिशेत ॥ खरवृषप्तमा जंघा । स्वल्पसौख्यप्रदायिनी ॥ ४२ ॥ इति गालजेवी जंघावाळाने लक्ष्मी मळ्ती नथी, बने मत्स्यजेवी जंघावाळो खरेखर पोतेज लक्ष्मी मेळवे . ॥४०॥ जामी जंघावाळा बने ठौंगणा मनुष्यो लक्ष्मी भोगवे , यने नट जेवी जंघावान हमेशां वैभवथी रहित रहे. कागमाजेवी जंघावाबनने राज्य मले, घने खर अथवा वृषजजेवी जंघा अल्प सुख देना. री थाय . ॥४१.४शा एवीरीते सामुद्रिकशा
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