Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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( ११ ) मिनः ॥ २० ॥ उन्नतैश्च समस्निग्धैः । सि तैस्तु सुखनाजिनः ॥ वृत्तै रक्तैस्तथा ताम्रे–
वेत्सोऽपि नराधिपः ॥ २० ॥ यस्य प्रदेशिनी दीर्घा । ह्यंगुष्टं च व्यतिक्रमेत् ॥ स्त्रीनोगं लनते सोऽपि । महाजोगं न संशयः ॥ ३० ॥ मध्यमायां तु दीर्घायां । जार्याहानिविनिर्देशत् ॥ नामिकायां दीर्घायां । विद्या
चां सरखां स्निग्ध मां गोळ तथा ताम्र जेवां रातां यांगळांवाळो माणस राजा थाय बे ॥ ॥ ५ ॥ जेनी अंगुठानी पमखेनी यांगळी अंगुठाथी मदोटी होय, ते मनुष्य स्त्रीजनुं सुख तथा महा वैभव जोगवे बे. ॥ ३० ॥ जेनी वचली यांगळी लांबी दोय तेनी स्त्रीन मरण पामे बे, अने जेनी अनामिका लांबी दोय ते विद्वान् थाय बे. ॥ ३१ ॥ जे
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