Book Title: Samudrik Shastram
Author(s): Mansukhlal Hiralal
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 12
________________ खाः शतं भवेत् ॥ २५ ॥ ललाटे यस्य दृश्य ते । त्रयो रेखाश्च जीवितं ।। षष्टिवर्ष च नि. र्दिष्टं । विंशत्यो दिरेखके ॥ १३ ॥ पतिमेध्यतिकीर्तिश्च । विक्रांत विनयः सुखी। अ तिस्निग्धा च दृष्टिश्च । स्वटषायुः स नरो न. वेत् ॥ २४ ॥ इत्यायुलदणं. अतःपरं प्रवदया. मि । देहावयवलदणं ॥ तत्र पादतलं यस्य जेने कपाळे त्रण रेखा होय तेनुं साठ, श्रने बे रेखा होय तेनुं चालीस वर्षनुं घायुष्य होय . ॥ २३ ॥ जेनी दृष्टि अतिस्निग्ध हो. होय, ते बहु बुद्धिवान् कीर्तिवान् विनयी सु. खी पण अल्पायुषी होय . ॥ २४ ॥ एवी. रीते आयुष्यनां लदण कह्यां . ॥ हवे शरीरनां अवयवोनां लक्षण कहुं बु, तेमां पण सर्वज्ञे कहेबु पगनां तब्ीयांचें लक्षण कहुं ई, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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