Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 16
________________ [15] बदला लेने के लिए जरासन्ध से मथुरा नगर मांग लियो । वहीं जाकर उसने अपने पिता उग्रसेन को परास्त किया और उसको बंदी बनाकर दुर्ग के द्वार के समीप रखा दिया । कंस ने वासुदेव को मथुरा बुला लिया और गुरुदक्षिणा के रूप में अपनी बहन देवकी उसको दी । देवकी के विवाहोत्सव में जीवद्यशा ने अतिमुक्तक मुनि का अपराध किया । फलस्वरूप मुनि ने भविष्यकथन के रूप में कहा कि जिसके विवाह में मत्त होकर नाच रही हो उसके ही पुत्र से तेरे पति का एवं पिता का विनाश होगा। भयभीत जीवद्यशा से यह बात जानकर कंस ने वसुदेव को इस वचन से प्रतिबद्ध कर दिया कि प्रत्येक प्रसूति के पूर्व देवको को जाकर कंस के आवास में ठहरना होगा। बाद में कंस का मलिन ओशय ज्ञात होने पर वसुदेव ने जाकर अतिमुक्तक मुनि से जान लिया कि प्रथम छ पुत्र चरमशरीरो होंगे इसलिए उनकी अपमृत्यु नही होंगी और सातवां पुत्र वासुदेव बनेगा और वह कंस का घातक होगा। इसके बाद देवको ने तीन बार युगल पुत्रों को जन्म दिया । प्रत्येक बार इन्द्राज्ञा से नैगम देव ने उनको उठाकर भद्रिलनगर के सुदृष्टि श्रेष्ठी की पत्नी अलका के पास रख दिया । और अलका के मृतपुत्रों को देवकी के पास रख दिया । इस बात से अज्ञात प्रत्येक बार कंस इन मृत पुत्रों को पछाड़ कर समझता था कि मैंने देवकी के पुत्रों को मार डाला। देवकी के सातवें पुत्र कृष्ण का जन्म सात मास के गर्भवास के बाद भाद्रपद शुक्ल द्वादशा को रात्रि के समय हुआ ।४ बलराम नवजात शिशु को १. दीक्षा लेने के पूर्व अतिमुक्तक कंस का छोटा भाई था । हपु. के अनुतार जीवद्यशा ने हंसते-हंसते, अतिमुक्तक मुनि के सामने देवकी का रजोमलिन वस्त्र प्रदर्शित करके उनकी आशातना की। त्रिच. के अनुसार मदिरा के प्रभाव. बश जीवद्यशा ने अतिमुक्तक मुनि के गले लग कर अपने साथ नृत्य करने को निमंत्रित किया । २. त्रिच. के अनुसार जन्मते ही शिशु अपने को सोंप देने का वचन कंस ने वसुदेव से ले लिया था । ३. त्रिच. गे सेठ सेठानी के नाम नाग और सुलसा है । ४. त्रिच. के अनुसार कृष्ण जन्म को तिथि और शमय श्रावण कृष्णाष्टमी और मध्यरात्री है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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