Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 142
________________ ४ तेरहमो संधि . [९] तो जण-मण-णयवाणंदणेण वुच्चइ जंववइहे गंदणेण हउं आयउ तुम्हहं कुल-कयंतु को चुक्कइ एवहिं महु जियंतु मयरद्धउ पेसिउ जाहि देव तिह करे करे लग्गइ कण्ण जेवं गउ वम्महु संवुकुमार थक्कु उप्पाइउ माया-वलु सु-सक्कु चंडाल-लोउ पुरवरे ण माइ । जुय-खए उत्थल्लु समुदु णाई अहि-विच्छिय-मंडल-कइ-तुरंग अरिअल्ल-रिच्छ-केसरि-मयंग खग-खर-दर-मूसय अणंत धाइय स-उवव विहवंत घत्ता पत्तिउ हरि-सुएण पन्मुक्कउ पट्टणे । कूर-महग्गहेण णावइ गह-घट्टणे ॥ [१०] रह जोत्तहो पल्लाणहों तुरंग पहरणई लेहो सज्जहो मयंग सारहि सारत्थई रएवि आय रह पुणु हय-पप्पड-पिट्ठ जाय महमत्त पत्त जंत एवं गय गयवर-साल मुएवि देव मंदुरिय विसूरिय मंदुरेहिं गल-खोडिउ खद्धउ उंदुरेहिं पल्लाण गसियइ तुट्ट बंध कहिं अहिणव तुरयाउत्तेण लद्ध अण्णेत्तहे भिच्च चवंति एवं अहि-विच्छिय णहहो पडंति देव अण्णेत्तहे होमारंभणेहिं आवंभणि घोसिय वंभणेहिं चंडालीहूवउ पुरु असेसु कहिं णिवसहुँ णिक्किउ को पएसु कंदिउ सेट्टिहिं विहडप्पडेहिं डिकरुयइ खद्धई मकडेहिं घत्ता किउ हल्लोहलउं पुरे संवु-कुमारे। मारिय राय-सुय कह-कह-वि कु-मारे॥ हपु-७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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