Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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हरिवंसपुराणु
४ ।
तो मयर-महद्धय-मायरिए णारायण-गयण-मणोहरिए पट्टविउ दूउ ‘णिय-भायरासु कुंडिणपुरवर-परमेसरासु वश्यब्भी-माहवि-पढम-दुहिय छण-छुद्धहीर-छवि छाय-मुहिय दिज्जउ महु पुराहो वम्महासु तो तेण स-मच्छरु करेवि हासु दुम्मुहेण दु-वयणेहिं दूउ वुत्तु कहो तणिय भइणि कहो तणउ पुत्तु अवगण्णिय भायर-जणण जाए को संववहारु समाणु ताए परि दिण्ण कण्ण चंडाल-लोए ण-वि घत्तिय रुप्पिणि-डिणि-तोए जं जंपिउ जेम वलुद्धरेण तं अक्खिउ दूवेणिठुरेण परमेसरि थिय विच्छाय-वयण मायंग होवि गय संव-मयण
घत्ता वुच्चइ वम्महेण कुल-जाइ-विसुद्धी। णरवइ तुम्ह सुय चंडाले पइद्धी ॥
[८] चक्कवइहे घरे उच्छलिय वत्त जिह तुह सुय डोवहं पुव्व-दत्त जइ वरु चंडालु-वि दइवें दिदछु तो महु पासिउ जगे को विसिट्छु पडु पंडिउ गायणु पुरिस-रयणु सोहग्गे पुणु पच्चक्खु मयणु तं णिसुणेवि कुविउ वियम्भ-राउ वरु महु घरु सीलु वहंतु आउ हक्कारह तलवरु तूरु छिबहो जीवंतु-वि लहु सूलियहिं धिवहो णिहुवारउ मंति चवंति एवं सुहुं अप्पणु चरिएहि पत्तु देव को आयहं दोसु अणाउलाह वेयायउ होति ण राउलाई णारायण-गायण सावलेव मारणहूं ण जंति णिरिक जेवं आएं समाणु कि विग्गहेण जे थिय चक्कवइ-परिग्गहेण
४
घता
चाडु-सयई करेवि आवासु विसज्जिय । वाहिरे णीसरेवि णं णव-धण गज्जिय ॥
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