Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

Previous | Next

Page 137
________________ हरिहंसपुराणु [१५] दुहम-दारुण-दणु-तणु-धायण विण्णि-वि भिडिय मयण-णारायण विग्णि-वि णं जमहाहिव-अंधय विग्णि-वि मयरकेउ-गरुडद्धय विण्णि-वि सुरवर-णयणाणंदण विण्णि-वि रुप्पिणि-देवइ-णंदण विण्णि-वि समर-सएहि समत्था कोसुम-धणु-सारंग-विहत्था विष्णि-वि णहयल-पहियल-गामिय मेहकूड-दारावइ-सामिव विहिं एक्कु-वि ण एक्कु ओवग्गइ विहिं एक्कहो-वि ण पहरणु लग्गइ अंतरे ताम परिठिउ णारउ एहु णारायण पुत्तु तुहारउ जो वालत्तणे असुरे हरियउ एउ भणेवि महियले ओयरियउ पत्ता ... तक्खणे महुमहणेण परिहरेवि घोरु समरंगणु । णिन्भर-णेह-वसेण सई-भुवेहि दिण्णु आलिंगणु ॥ ८ इय रिहणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए । पज्जुण्ण-मिलण-वण्णणो णाम वारहमो सग्गो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144