Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 135
________________ हरिवंसपुराणु [११] भोयणु मुंजेवि पाणिउ सोसेषि ताहे असंते मंतु आघोसेवि खुड्डा-वेसे पइसइ तेत्तहे रुप्पिणि-भवणु मणोहरु जेतहे ताम ताए सु-णिमित्तई दिट्टई मित्तिपहिं जाइं नवइट्टई कोइल-महुर-मणोहर-जप्पउ अंवउ मउरिउ फुल्लिउ पक्कउ सुक वावि जल-भरिय खणंतरे पुत्तागमणु-दिछ सिविणंतरे जायई खुज्ज-पंगु-वहिरंधई रूव-गमण-सवर्णाच्छ-समिद्धई ताम पराइर णयणाणंदणु , खुड्डा-वेसें केसव-णंदण कण्हासणे उबइठ्ठ तुरंतउ मिउ तेण घरम्गि वलंतउ ४ घत्ता सोसिउ सालिलु असेसु तेहि-मि वालु ण धाइ हरि मोय-सहासई दिण्णइ । सूयार-सयई णिविण्णइं ॥ [१२] तहिं अवसरे आयउ हकारउ तुम्हहं सिर-भदावण वारउ सो चंडिल्लु कुमारे तज्जिउ मुंडियडेण सिरेण विसज्जिर आयउ कुट्टणि-णिवहु स-तूरउ माया-गयवरेण किउ चूरउ अवर महत्तर-पट्ट (१) पराइय ते-वि ओवंधेवि भद्दण धाइय आयउ गयकुमारू विभारिउ माया-सीहे कह-वि ण दारिउ सावलेउ वसुएउ पराइउ माया-मेसे कह-वि ण घाइउ आयउ जरकुमारु रिउ-रुंभणु ताम वारे थिउ माया-वंभणु सो पइसोरु ण देइ कुमारहो मोक्खु जेम चउ-गइ-संसारहो ८ घत्ता वंभण उठ्ठि भणंतु किर चरणे घरेप्पिणु कड्ढइ । णवर णिरारिउ पाउ रिण जिह स-कलंतरु वड्ढइ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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